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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ के लिए यह दृष्टांत खास प्रेरक है।
सं. २०४९ में प्रखर प्रवचनकार प. पू. पंन्यास प्रवर श्री रत्नसुंदर विजयजी म.सा. (हाल आचार्यश्री) का चातुर्मास बारडोली में हुआ था तब बिपीनभाई ने चातुर्मास एकाशन तप करते हुए पर्युषणमें अठाई की एवं पारणे में भी एकाशन ही किया था । नवकार और गुरुवंदन आदि के सूत्र कंठस्थ कर लिये हैं । वे प्रतिदिन नवकार महामंत्र की दो पक्की माला का जप करते हैं ।
जीवनमें धर्म मार्ग में बहुत आगे बढ़ने की उनकी प्रबल भावना है, इसलिए बारडोली में चातुर्मास करने के लिए पधारते हुए किसी मुनिवरके श्रीमुखसे जिनवाणी श्रवण करने का मौका वे चूकते नहीं हैं। बिपीनभाई की आराधना और भावना की हार्दिक अनुमोदना ।।
बारडोलीमें एक अन्य जैनेतर कुलोत्पन्न भाई जगदीशभाई दुर्लभभाई मैसुरीआ भी जैन धर्म का पालन करते हैं । उन्होंने धर्मचक्र तप, उपधान तप, आयंबिल ओली इत्यादि तपश्चर्याएँ भी की हैं ।
__ शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें बिपीनभाई पधारे थे।
पता : बिपीनभाई भूलाभाई पटेल मु. पो. बारडोली, जि. सुरत (गुजरात) पिन : ३९४६०१
नवपदजी की ओली और उपधान की आराधना करता हुआ कसाई युवक नबी
शासन प्रभावक प. पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय भद्रंकरसूरीश्वरजी म. सा. मद्रास (चेनई) में पधारे । तब मूलमें राजस्थान का निवासी किन्तु मद्रासमें रहता हुआ एक खाटकी युवक नबी पूज्यश्री के परिचयमें आया । सत्संग के प्रभावसे पूर्वजन्म के सुसुप्त संस्कार जाग्रत हुए । जैन धर्म के प्रति उसके हृदयमें अत्यंत आकर्षण उत्पन्न हुआ । उसने