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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
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उनके स्वर्गस्थ भाई ने अपंग होते हुए भी मासक्षमण किया था । उनकी भी जैन धर्मके प्रति अनुमोदनीय श्रद्धा थी ।
श्रावकों के लिये आजीवन कर्तव्यों में जिनबिम्ब भरानेका भी शास्त्रीय विधान है । प्रजापति कुलमें जन्मे हुए भाणजीभाई के दृष्टांतमें से प्रेरणा पाकर सभी श्रावक श्राविका अपने इस कर्तव्य के प्रति तत्पर बनें
यही शुभ भावना ।
शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें उपस्थित होनेका सौभाग्य पाकर भाणजीभाई अत्यंत भावविभोर हो गये थे । उनकी तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 16 के सामने ।
पता : भाणजीभाई (प्रजापति), वासुकी प्लोट, मु.पो. थानगढ, जि. सुरेन्द्रनगर (सौराष्ट्र)
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प्रभुदर्शन के बिना पानीकी बुंद भी नहीं पीनेवाले बिपीनभाई भूलाभाई पटेल
शासन प्रभावक युवा प्रतिबोधक, प. पू. पंन्यास प्रवर श्री चंद्रशेखरविजयजी म.सा. का चातुर्मास सुरत जिले के बारडोली गाँवमें हुआ था तब पूज्य श्री के प्रेरक प्रवचनोंसे Turning point of the life' जीवन परिवर्तन के मोड़ को संप्राप्त हुए बिपीनभाई पटेल ( उ व. ४०) जन्मसे जैनेतर होते हुए भी पिछले १४ साल से चातुर्मास के ४ महिने लगातार एकाशन का पच्चक्खाण करते हैं। शेषकालमें भी हररोज नवकारसी और चौविहार करते हैं। उन्होंने जमींकंद का आजीवन त्याग किया है । वर्धमान आयंबिल तपकी १५ ओलियाँ की हैं। प्रतिवर्ष नवपदजी की दोनों ओलियाँ एक धान्य और एक ही द्रव्यसे करते हैं । प्रतिदिन श्री जिनेश्वर भगवंत के दर्शन किये बिना मुँहमें अन्नका दाना या पानी की बुँद भी नहीं डालने का उनका नियम है । अपने घरके पासमें ही जिनमंदिर होते हुए भी नियमित प्रभुदर्शन करने के लिए आलस्य करनेवाले श्रावक - भाविकाओं