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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ऐसा लोकोत्तर जैन धर्म पाकर अब पुदगल में स्मणता नहीं करनी है ऐसी भावना से भावित मोहनभाई सजोड़े ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करके मोचीका धंधा छोड़कर 'कोहीनूर किराणा स्टोर्स' नामकी किराणे की दुकान चलाते हैं और अत्यंत अनुमोदनीय रूपसे जैन धर्म का पालन करते हैं।
यह है जैन शासन का और सत्संग का प्रभाव । शंखेश्वरमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें मोहनभाई भी पधारे थे । उनकी तस्वीर पेज नं. 16 के सामने प्रकाशित की गयी है ।
पता : मोहनभाई लक्ष्मणभाई वाळा, कोहीनूर किराणा स्टर्स, नगरपालिका कचहरीके सामने, मु.पो. गढड़ा (स्वामी नारायण), जि. भावनगर (सौराष्ट्र), पिन : ३६४७५०.
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जिनबिम्ब भरानेवाले प्रजापति भाणजीभाई
थानगढमें रहते हुए प्रजापति भाणजीभाई (उ. व. ७२) को सं. २०३४में प. पू. पं. श्री भद्रशीलविजयजी म.सा. के चातुर्मासमें धर्मका रंग लगा और दिन-प्रतिदिन वह रंग बढता चला । फलतः वे हररोज जिनपूजा करते हैं। समेतशिखरजी, शत्रुजय आदि अनेक तीर्थोंकी यात्रा उन्होंने की है।
बोरीवलीमें चंदावरकर लेनमें आये हुए जिनमंदिरमें उन्होंने प. पू. आ. भ. श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें पंच धातुका जिनबिंब भराया है।
___ साधु साध्वीजी भगवंतोंकी सुंदर वैयावच्च करते हैं । प्रतिवर्ष चैत्र एवं आसोज महिनेमें नवपदजी की ओलीकी आराधना करते हैं ।
अपनी अंतिम जिंदगी पालीताना में आदिनाथ भगवंत की भक्ति और साधु साध्वीजी भगवंतों की वैयावच्च करते हुए बीताने की वे भावना रखते हैं।