________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
ब्रह्मचर्यव्रत स्वीकारते हुए दो मासक्षमण और २० अढ़ाई के तपस्वी श्री मोहनभाई मोची
गुजरातमें भावनगर जिले के गढड़ा (स्वामी नारायण) गाँवमें रहते हुए श्री मोहनभाई जन्मसे मोची और धर्मसे चुस्त स्वामी नारायणी होते हुए भी वि. सं २०३१ में अमी गुरुके चातुर्मासमें जैन मित्रोंके साथ उपाश्रयमें आने लगे।
व्याख्यान श्रवणमें रसके साथ उनकी श्रद्धा भी बढती गयी और उन्होंने आयंबिल, उपवास, आदि तपश्चर्या का प्रारंभ कर दिया । मासधर के दिनसे लेकर संवत्सरी तक मासक्षमण की महान तपश्चर्या भी चढते परिणामसे परिपूर्ण की । ऐसी विशिष्ट तपश्चर्यामें भी वे व्याख्यान श्रवणके लिए प्रतिदिन उपाश्रयमें आते थे ।
श्री गढड़ा स्थानकवासी जैन संघने स्वतंत्र रूपसे मोहनभाई का बहुमान करने के लिए शोभायात्रा निकाली और सार्वजनिक धर्मसभामें उनका बहुमान किया ।
मोहनभाई की धर्मपत्नी कान्ताबहनने भी अपने पति के साथ १६ उपवास किये।
मासक्षमण के पारणे के बाद मोहनभाई ने १ वर्षमें १०१ आयंबिलकी तपश्चर्या की । वि. सं. २०३१ से २०५२ तक लगातार २२ वर्ष प्रत्येक पर्युषणमें उन्होंने अाई से ३१ उपवास तक की तपश्चर्या की है। कुल मिलाकर १२ अठाई, ५ नवाई, १ बार १० उपवास, २ बार १५ उपवास १ बार ३० उपवास और १ बार ३१ उपवास किये हैं। सं. २०५३ में ८ दिन तक समेतशिखरजी आदि तीर्थों की यात्रा भी की है।
इस तरह वीतराग परमात्मा द्वारा प्ररूपित धर्मको संप्राप्त मोहनभाई अत्यंत एकाग्रता पूर्वक सामायिक, प्रतिक्रमण आदि धर्माराधना करते हैं । चातुर्मासमें और शेषकालमें यथासंभव बड़ी तपश्चर्याएँ करते रहते हैं । आयंबिल की ओलियाँ करते हैं । जैन साधु साध्वीजी भगवंतों के प्रति अनन्य श्रद्धा भक्ति रखते हैं।