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________________ ९८ ५२ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग मासक्षमण और सिद्धितप करनेवाले रमेशभाई बाढेर (मोची) १ वि. सं. २०४१में धर्मचक्र तप प्रभावक प. पू. पंन्यास प्रवर श्री जगवल्लभविजयजी गणिवर्य म.सा. (हाल आचार्यश्री) का चातुर्मास धंधुका नगरमें हुआ था । तब उपाश्रयकी खिड़कीमें से आते हुए बरसात के पानी को रोकने के लिए अग्रणी श्रावक की सूचनासे रमेशभाई मोची प्लास्टीक बाँध रहे थे । उसी समय म. सा. एक जैन युवक को धर्मचक्र तप करने के लिए प्रेरणा दे रहे थे । उस युवकने तो इस प्रेरणा का अस्वीकार किया मगर मोची युवकने यह सुनकर स्वयं कहा कि 'महाराज साहब । मैं तैयार हूँ इस तपको करने के लिए । 1 म.सा. ने कहा कि 'हररोज उपाश्रयमें रहकर यह तप और इसकी आराधना करनी होगी । रमेशभाई ने स्वीकार किया । धर्मचक्र तपकी भावनासे प्रथम अठ्ठम तपका पच्चक्खाण लिया । अठ्ठम तप एकदम आसानी से हो जाने से उनके हृदयमें मासक्षमण करने के भाव जाग्रत हुए । म.सा. ने उनकी भावनाको प्रोत्साहन दिया और तीन तीन उपवासके पच्चक्खाण लेते हुए निर्विघ्नतासे मासक्षमण तप उपाश्रयमें रहकर ही परिपूर्ण किया । दूसरे चातुर्मासमें उन्होंने ४२ दिनका सिद्धितप भी कर लिया । अब वे प्रतिदिन नवकारसी - चौविहार और जिनपूजा भी करते हैं । सुपात्रदान का लाभ लेते हैं । कुल परंपरागत मोचीका व्यवसाय करते हुए अपनी आजीविका चलाते हैं । रमेशभाई की आराधना और उनको आराधनामें जोड़नेवाले पूज्यश्री की भूरिशः हार्दिक अनुमोदना । पता : रमेशभाई गोविंदभाई बाढेर ( रवि फूट वेर), मु.पो. धंधुका, जि. अहमदाबाद (गुजरात).
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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