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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ८७ करीब ३ साल पूर्व हम आंगणवाड़ा गये थे तब हठीजी के जीवन को नजदीक से देखनेका मौका मिला था । आंगणवाड़ा के शिक्षक चंपकभाई एफ. वलाणीने हठीजी को प्रोत्साहित करने में अच्छी दिलचश्पी ली है, इसलिए वे भी धन्यवाद के पात्र हैं । पता : हठीजी दीवानजी ठाकोर, मु. आंगणवाडा, पो. जामपुर, ता. कांकरेज, जि. बनासकांठा (उ. गुजरात) ४३ तीन उपधान करते हुए धर्माजी गायकवाड़ ( मोची) कर्णाटक राज्यमें धारवाड़ जिले के लक्ष्मणपुर गाँवमें मोची कुलोत्पन्न धर्माजी गायकवाड़ (उ. व. ६८) को आजसे करीब १४ साल पहले प. पू. प्रवर्तक श्री धर्मगुप्तविजयजी म.सा. के सत्संगसे जैन धर्मका रंग लगा। वे हररोज जिनपूजा, नवकारसी चौविहार और नवकार महामंत्र का जप एवं भावसे सामायिक करते हैं । उन्होंने तीनों उपधान तपकी आराधना कर ली है । ६८ एकाशन पूर्वक नवकार महामंत्रकी साधना की है। श्रावकों को नवकार महामंत्र आदि धार्मिक सूत्रों के अध्ययन के लिए उपधान तप करने का शास्त्रीय विधान है । मगर जैनकुलोत्पन्न श्रावकोंमें भी तीनों उपधान करने वालोंकी संख्या मर्यादित ही है तब मोची कुलोत्पन्न धर्माजी गायकवाड़ की यह आराधना अत्यंत अनुमोदनीय है । धर्माजीने (१) पूनासे पालिताना (२) नीपाणीसे कुंभोजगिरि और (३) झूनरसे पाबल तीर्थ के छरी पालक यात्रा संघोंमें शामिल होकर तीर्थयात्राएँ भी भावपूर्वक की हैं । पता : धर्माजी गायकवाड़, मु.पो. लक्ष्मणपुर जि. धारवाड़ (कर्णाटक)
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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