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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ गुजरातमें बनासकांठा जिले के आंगणवाड़ा गाँवमें रहते हुए सद्गृहस्थ हठीजी दीवानजी ठाकोर (उ. व. ५०) का जीवन भी कुछ ऐसा ही संदेश हमें देता है । हठीजीको पूछने पर वे कहेंगे कि जेसल जाडेजा की तरह मैंने भी हर तरह के पाप किये हैं । आंगणवाड़ा और आसपास के गाँवोंमें हठीजीके नामसे सभी काँपते थे । पाँच सात लीटर शराबसे भरा हुआ केन वे एक साथ गटागट पी जाते थे और शराबका व्यापार भी करते थे । मगर किसी धन्य क्षणमें हठीजीके जीवनमें आश्चर्यजनक परिवर्तन आया।
. आज हठीजी आंगणवाड़ा गाँवमें प्रथम पंक्तिके सज्जन व्यक्तियोंमें गिने जाते हैं । जीवदया के वे श्रेष्ठ पालक हैं । उनके खेतमें खरगोश, मोर आदि कई पशु-पक्षी निर्भयतासे रहते हैं । हठीजी चींटी आदि छोटे से जीव जंतुओं की भी बहुत यतना करते हैं । जैन मंदिरमें वे सुबह शाम दो टाईम जाते हैं । प्रभुजीकी आरती बोलनेका और उतारने का उनको मानो व्यसन लग गया है । प्रभुपूजा किये बिना वे मुँहमें कुछ भी डालते नहीं हैं । अनुकंपा के रूपमें वे पक्षियोंको रोज दाना डालते हैं । पशुओंको पानी पिलानेके लिए उन्होंने खास प्याऊ बनाई है । बिजलीके चले जाने से कभी गाँवके लोगोंको पीने के पानी की तकलीफ पड़ती है तब हठीजी तेलसे चलनेवाला अपना मशीन चलाकर सारे गाँवके लोगोंको पानी की सुविधा कर देते हैं।
. जिस हठीजीको पहले कोई एक किलो नमक देनेके लिए भी राजी नहीं होते थे उनको आज सवा लाख रुपये देनेवाले भी आसानीसे मिल जाते हैं । उनके घरका वातावरण बहुत सुंदर है । भगवान के प्रक्षालनके लिए उन्होंने खास गाय रखी है और गायका दूध जिनमंदिरमें निःशुल्क देते हैं। उनका जीवन नीतिमत्तासे व्याप्त है । वे पूर्ण शाकाहारी हैं । जो शाकाहारी नहीं होते हैं ऐसे अपने रिश्तेदारोंके घरका पानी भी वे पीते नहीं हैं । हठीजी पढे लिखे कम है फिर भी धार्मिक किताबें पढनेका उनको बड़ा शौक है । वे सभी व्यसनों से मुक्त हैं और लोगों को भी व्यसन छोड़नेके लिए समझाते हैं । ऐसी आत्माओंको यदि प्रोत्साहित किया जाय तो अपने जीवन द्वारा वे अनेकों के लिए हितकारक हो सकते हैं।