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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ बिमार और वृद्ध साधु भगवंतों की हर तरह की वैयावच्च ऐसे सुंदर भावपूर्वक करते हैं कि इसके प्रभावसे उनकी सुवास चारों ओर फैली हुई है। वे ओसतन एकांतर आयंबिल करते हैं। हररोज जिनपूजा करते हैं । फुरसत के समयमें नवकार महामंत्रकी माला उनके हाथमें हमेशां फिरती रहती है ।
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शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें उपस्थित होनेकी उनकी भावना होते हुए भी बिमार साधु भगवंतकी वैयावच्चमें विक्षेप न हो इसलिए उन्होंने वहाँ आनेमें अपनी असमर्थता दिखलायी और समारोहकी अत्यंत सराहना की । उनकी बहुमान सामग्री भावनगर भिजवानेका प्रबंध आयोजकों द्वारा किया गया था ।
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शास्त्रोंमें वैयावच्चको अप्रतिपाती गुण कहा गया है । अर्थात् अन्य सद्गुणोंके संस्कार विपरीत निमित्तवशात् नामशेष भी हो जाते हैं मगर वैयावच्च का सद्गुण जीवको अचूक मोक्ष अवस्था तक पहुँचाता ही है । मोक्ष पर्यं प्रत्येक भवोंमें उसके संस्कार साथमें रहते हैं । पूर्वभवमें ५०० साधुओं की सेवा करनेवाले बाहु और सुबाहु मुनि भरत चक्रवर्ती और बाहुबलि बनकर मोक्षगामी बने । शिवाभाई भी अनुमोदनीय साधुसेवा द्वारा ऐसा विशिष्ट पुण्यानुबंधी पुण्य उपार्जन करके शीघ्र मोक्षगामी बनें यही शुभेच्छा । पता : शिवाभाई कोली, दादा साहब का जैन उपाश्रय, भावनगर (सौराष्ट्र) पिन : ३६४००१.
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वर्धमान आयंबिल तप करते हुए वयोवृद्ध ब्राह्मण पंडित श्री वैद्यनाथजी मिश्र
सं. २०५० में हमारा चातुर्मास अहमदाबादमें नारणपुरा चार रस्ता पास अचलगच्छ जैनउपाश्रयमें हुआ था, तब मेरे शिष्य मुनिराज श्री धर्मरत्न सागरजीको संस्कृत काव्य, न्याय आदिका अध्ययन करवाने के लिए बिहारके पंडित श्री वैद्यनाथजी मिश्र (उ. व. ६६ ) भी हमारे पास रहे थे ।