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पानी भी बहरके अपने मकान हुए साधु-साध्वी
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ स्नातक (ग्रेज्युएट) हैं । विहारमें आते हुए साधु-साध्वीजी भगवंतोंको वे भावपूर्वक विज्ञप्ति करके अपने मकानमें ठहराते हैं और अत्यंत उल्लासपूर्वक गोचरी पानी भी बहोराते हैं । अनेक साधु साध्वीजी भगवंतोंकी वैयावच्चका उन्होंने लाभ लिया है।
इसी तरह कई जैनेतर गाँवोंमें विविध जातिओं के सदगृहस्थ अत्यंत भावपूर्वक जैनसाधु साध्वीजी भगवंतोंकी वैयावच्च करते हैं । साक्षात् भगवान अपने घरमें पधारे हों ऐसे हर्षोल्लासपूर्वक सेवा और सत्संग करते हैं, जो अत्यंत अनुमोदनीय और अनुकरणीय है।
दूसरी ओर 'घरकी मुर्गी दाल बरोबर' इस कहावतके अनुसार जैन कुलोत्पन्न भी कुछ लोग इस विषयमें अपना कर्तव्य चूक जाते हैं । ऐसे लोगोंको इस प्रकारके दृष्टांतोंमें से प्रेरणा पाकर अपने कर्तव्यमें जाग्रत होनेकी और सत्संगकी भूख जगानेकी खास जरूरत है ।।
शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें मूलजीभाई भी उपस्थित हुए थे । अपने वक्तव्यमें उन्होंने देवकी वणसोल गाँवमें उपाश्रयकी जरूरत होने पर जोर दिया था । कुछ भावुक आत्माओंने इस दिशामें कदम उठाने की तैयारी भी दिखायी थी । आशा है मूलजीभाई की भावना शीघ्र साकार होगी। उनकी तस्वीर के लिए देखिए पेज नं 15 के सामने ।
पता : मूलजीभाई मास्टर, मु. पो. देवकी वणसोल, तह. नड़ियांद, जि. अहमदाबाद (गुजरात)
साधु सेवाकारी शिवाभाई कोली
भावनगरमें 'दादासाहब' के उपाश्रयमें ही दिन रात रहते हुए शिवाभाई कोली (उ. व. ६३) करीब ३५ वर्षोंसे प. पू. आचार्य भगवंत श्रीमद्विजयउदयसूरीश्वरजी म.सा. और प.पू. आ. भ. श्रीमद्विजय मेस्त्रभसूरीश्वरजी म.सा. के सत्संगसे जैनधर्मसे प्रभावित हुए है ।