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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
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सेवाभावी स्वातंत्र्यसैनिक वैद्यराज अनुप्रसादभाई ( नाई)
अहमदाबाद (मणिनगर) में रहते हुए अनुप्रसादभाई वैद्य जातिसे नाई होते हुए भी बचपनसे ही श्रावकों के सानिध्य के कारण से जैन धर्मानुरागी बने। . अहमदाबाद की हाजा पटेल की पोल में लांबेश्वर जिनमंदिर के पास रहते हुए उनके मामा मगनलालभाई एवं उनके सुपुत्र बाबुभाई भी श्रावकों के साथ परिचय से जैनधर्मानुयायी बने थे ।
अनुप्रसादभाई ने एकाशन, आयंबिल की ओली, उपवास, अठुम और अछाई की तपश्चर्या भी अपने जीवनमें की है । जिनमंदिरमें जाकर चैत्यवंदन करते हैं । अपने पड़ौसमें रहनेवाले गोविंदजीभाई नामके कच्छी श्रावक के घर जाकर उनके साथ प्रतिक्रमण भी करते हैं । जमीकंद और रात्रिभोजन का त्याग किया है ।
निःस्पृही अनुप्रसादभाई स्वातंत्र्य सैनिक होते हुए भी सरकार के द्वारा दी जाती सेवावृत्ति (पेन्सन) को स्वीकार नहीं करते हैं । कई वर्षों से वैद्यका व्यवसाय करते हुए वे साधु साध्वीजी भगवंतोंकी निःशुक्ल सेवा करते हैं ।
पहले हररोज १५ रुपयोंकी दवा गरीबों को मुफ्तमें देते थे । अब वे विना मूल्य ही सभीकी सेवा करते हैं।
संसार पक्षमें खंभात नगर के तीन साध्वीजी स्व. सा. श्री दिव्यप्रभाश्रीजी, स्व. सा. श्री चारित्रश्रीजी और सा. श्रीललितदर्शनाश्रीजी उनके विशेष उपकारी हैं । उनके दर्शन के लिए वे प्रतिवर्ष एक बार अचूक जाते थे।
आर्थिक स्थिति साधारण होते हुए भी प्रभुभक्ति के प्रतीकके रूपमें उन्होंने जिनमंदिरमें प्रभुजीकी अंगरचनाके लिए ४ तिथियाँ लिखाई हैं।