________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ (वैष्णव) कुलोत्पन्न लक्षेशकुमारने केवल ११ सालकी उम्रमें २० दिन तक लगातार एकाशन की तपश्चर्या के साथ एक लाख नवकार महामंत्र जप की आराधना की थी । पर्युषणमें अट्ठाई तप भी उसने किया था । भविष्यमें उपधान तप करने की भी वह भावना रखता है । अल्प समयमें ही उसने चैत्यवंदन, गुरुवंदन और सामायिक के सूत्र भी कंठस्थ कर लिये हैं ।
टी.वी. वीडियो के इस युगमें जैन कुलोत्पन्न बच्चों को भी पाठशालामें या साधु-साध्वीजी भगवंतों के पास भेजकर धार्मिक सूत्रों का अभ्यास करवाने में आजके माता-पिताओंको कितनी कठिनाई का अनुभव होता है, ऐसे कालमें जैनेतर कुलमें जन्मा हुआ बालक छोटी उम्रमें और अल्प समयमें इतनी प्रगति साध सके इसका श्रेय सत्संग और पूर्व जन्म के संस्कारों को मिलता है ।
लक्षेशकुमार बहुत सम्यक् ज्ञानाभ्यास करके संयम द्वारा मानवभवको सफल बनाये यही हार्दिक शुभेच्छा ।
पता : लक्षेशकुमार भूपेन्द्रभाई भावसार दाजीकलाकी खड़की, लल्लुभाई चकला, भरूच. पिन : ३९२००१ (गुजरात)
परीक्षाके कारण लक्षेशकुमार शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें उपस्थित नहीं रह सका था मगर बादमें वह शंखेश्वरमें आया था।
लक्षेशकुमारकी पड़ौसमें रहनेवाले रतिलालभाई पुंजाभाई गांधी (उव.७२) जन्मसे प्रजापति (कुम्हार) होते हुए भी १५ साल पहले भरुचसे पालीताना तीर्थ के पदयात्रा संघमें शामिल हुए थे तब से जैन धर्मका पालन करते हैं। हररोज जिनमंदिरमें जाकर जिनपूजा करते हैं। पिछले ५ साल से फाल्गुन शुक्ल १३ को पालिताना की यात्रा करते हैं।
कई वर्षों से ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं । अठ्ठाई, सोलहभत्ता, (१६ उपवास) वर्धमान तप आदि तपश्चर्या की है। ओसतन वे एकाशन ही करते हैं । सम्मेतशिखरजी, जेसलमेर आदि तीर्थों की यात्रा की है ।
शंखेश्वर में आयोजित अनुमोदना समारोह में वे उपस्थित रहे थे ।