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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ बढता ही चला और कुछ ही दिनोंमें उन्होंने प्रतिदिन जिनपूजा करनेका भी प्रारंभ कर दिया । पिछले ६ वर्षों से वे नवपदजी की आयंबिलकी ओली भी करते हैं। एकबार उन्होंने आयंबिलकी ओली करवाने के लिए अन्य तीन दाताओंके साथ लाभ लिया, इतना ही नहीं मगर स्वयंने चालू ओलीके अंतिम तीन दिनोंमें अठ्ठम तप भी किया । वे हररोज नवकार महामंत्रकी माला गिनते हैं। उनकी धर्मपत्नी भी प्रतिदिन जिनमंदिरमें जाकर प्रभुदर्शन करती है।
केवल एक ही बार स्वप्नमें आचार्य भगवंत के दर्शन द्वारा अमृतलालभाई का कैसा सुंदर हृदय परिवर्तन और सुखद जीवन परिवर्तन हो गया ।
'दुर्जन के साथ दोस्ती करने की बजाय सज्जन के साथ दुश्मनी रखनी अच्छी ' यह कहावत प्रस्तुत दृष्टांत द्वारा स्पष्ट होती है ।
प्रभु महावीर को डंक देनेवाले चंडकौशिक नाग, वाद करनेके लिए तैयार हुए इन्द्रभूति गौतम और तेजोलेश्या फेंकनेवाले गोशालकका भी कैसा सुंदर हृदय परिवर्तन हो गया था !
यदि उत्तम आत्माओं के साथ दुश्मनी भी हो तो ऐसा सुंदर परिणाम ला सकती है तो उनके प्रति आदर और भक्तिभाव पूर्वक किया गया सत्संग जीवनमें कौनसे आध्यात्मिक चमत्कारोंका सर्जन नहीं कर सकता है यही एक सवाल है ।
____ अमृतलालभाई भी शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें उपस्थित हुए थे। उनकी तस्वीर इसी किताब में पेज नं. 16 के सामने प्रकाशित की गयी है।
पता : अमृतलालभाई मोहनलाल राजगोर, मु.पो. वालवोड, ता. बोरसद, जि. आणंद (गुजरात) पिन : ३८८५३० फोन : ८८१६१