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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
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श्रीफल की प्रभावना के निमित ने लिंगायत शिवप्पा को आचार्य गुणानंदसूरि बनाया
सिद्धांत महोदधि, कर्म साहित्य निष्णात, वात्सल्य वारिधि, प. पू. आ. भ. श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी म.सा. विहार करते हुए कर्णाटक के निपाणी गाँवमें पधारे । सच्चारित्रचूडामणि पूज्यश्री के दर्शन-वंदन और व्याख्यान श्रवणके लिए अच्छी संख्यामें लोग इकट्ठे हुए थे । व्याख्यान के बाद श्रीफलकी प्रभावना हो रही थी। तब लिंगायत जातिका शिवप्पा नामका एक लडका श्रीफलकी प्रभावना लेकर पृष्ठ द्वारसे बार-बार आकर प्रभावना लेने लगा । इस तरह उसने २५ श्रीफल लिये ! आखिरमें एक अग्रणी श्रावकका ध्यान उसकी ओर गया । उन्होंने उसे पकड़ लिया और धमकाया। श्रीफल वापिस ले लिये। अचानक आचार्य भगवंतका ध्यान इस घटनाकी
ओर आकृष्ट हुआ । दीर्घदृष्टा और समयज्ञ सूरिजीने तुरंत अग्रणी श्रावकको इशारा करके उस लड़केको छुड़ाया एवं श्रीफल उसे वापिस दिलाये ।
अपने ऐसे अपराधकी उपेक्षा करके निष्कारण वात्सल्य बरसानेवाले आचार्य भगवंतके प्रति बालकका हृदय अहोभावसे भर गया । उसने सूरिजी से क्षमा याचना की । यथार्थनामी पूज्यश्रीने उसे प्रेमसे परिप्लावित कर दिया। फलतः वह बालक प्रतिदिन सूरिजीका सत्संग करने लगा । आखिर उसने दीक्षा ली । शिवप्पा मुनि गुणानंदविजय बन गया । कुछ वर्षों के बाद उनकी योग्यता देखकर गुरुदेवने उन्हें सूरिपद पर आरूढ कर दिया । अत्यंत निरभिमानी एवं सादगी युक्त जीवन जीनेवाले आ.भ.श्री गुणानंदसूरिजी की वाचना श्रवणका लाभ नवसारीमें तपोवन जिनालयकी अंजनशलाका-प्रतिष्ठा के प्रसंग पर हमें मिला था ।।
___ इस तरह प्रभावना के निमित्त एवं सूरिजी के वात्सल्यने शिवप्पाको मुनि और सूरि बनाया ।
किसी भी प्रकारको भूलको सुधारने के लिए आक्रोश और तिरस्कार के बदलेमें प्रेम और वात्सल्य कैसा विस्मयकारक परिणाम ला सकता है, यह इस दृष्टांतमें हमें देखने को मिलता है । यदि इन गुणोंको