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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ तस्वीरके लिए देखिए पेज नं. 25 के सामने ।
पता : सरदारजी पप्पुभाई अरोरा (गुरु मोहिंदर सींग), १५५ जूना बाजार, मु.पो. खड़की, जि. पुना (महाराष्ट्र) पिन : ४११००३ फोन : ३१३२५२
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जैन धर्म के कट्टर विरोधी ब्राह्मण अमृतलालभाई राजगोरका हृदय परिवर्तन
खेड़ा जिले के वालवोड़ गाँवमें जैन मन्दिर के पीछे रहनेवाले अमृतलालभाई राजगोर (ब्राह्मण उ. व. ५४) एक समय जैन धर्म के अत्यंत विरोधी थे। मगर परिवर्तनशील इस संसारचक्रमें उनके जीवनमें किसी धन्य क्षणमें हृदय परिवर्तन और जीवन परिवर्तनकी शहनाई गूंज उठी।
१०३ सालके दीर्घायुषी महा तपस्वी सुसंयमी स्व. प.पू. आचार्य भगवंत श्री सिद्धिसूरीश्वरजी म.सा. का समाधिमंदिर बनवानेकी वालवोड जैन संघको बहुत भावना थी । उसके लिए जिनमंदिरके पासमें अनुकूल खुली जमीन थी वह अमृतलालभाई राजगोरकी होने से श्री संघने उनको योग्य मूल्य द्वारा जमीन देने के लिए विज्ञप्ति की । लेकिन जैन धर्म के अत्यंत विरोधी अमृतलालभाई किसी भी कीमत पर वह जमीन संघको देने के लिए तैयार नहीं थे ।
मगर एक रातको स्व. आचार्य भगवंत श्री सिद्धिसूरीश्वरजी म.सा.ने स्वप्नमें अमृतलालभाईको दर्शन दिये और संघ द्वारा अपेक्षित जमीन श्री संघको देने के लिए प्रेरणा दी । इस घटनासे उनके हृदयमें जैन साधु भगवंतों के प्रति अत्यंत समादर भाव उत्पन्न हुआ और दूसरे ही दिन उन्होंने संघके अग्रणी श्रावकोंको स्वयं बुलाकर अपनी जमीन बिना मूल्य से. श्री संघको अर्पण कर दी ।
बादमें उनके हृदयमें जैन शासनके प्रति उत्तरोत्तर बहुमान भाव