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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग १
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धमकी दी मगर रीजुमलजी धर्मश्रद्धासे विचलित नहीं हुए। आखिर दृढ़ श्रद्धाके आगे सभीको झुकना पड़ा ।
'यतो धर्मस्ततो जयः' महाभारतमें गांधारी द्वारा अपने बेटे दुर्योधनसे कहे गये इन शब्दों के मुताबिक रीजुमलजीकी धर्मश्रद्धा की हुई। पुलिस के रूपमें अपना कर्तव्य निभाते हुए भी उन्होंने जिनदर्शन एवं पूजाका नित्यक्रम कई वर्षों तक बराबर निभाया है। आज वे उम्रके कारण पुलिस की नौकरीसे निवृत्त हुए हैं, मगर जिनमंदिर जानेसे निवृत्त नहीं हुए हैं। घुटनोंमें वायुका दर्द होने के बावजूद भी वे प्रतिदिन श्री चिंतामणि पार्श्वनाथके जिनमंदिरमें अचूक जाते हैं । अचलगच्छीय मुनिराज श्री मलयसागरजी की प्रेरणासे उनकी धर्मभावना सविशेष रूपसे दृढतर बनी है ।
सचमुच जैनेतर कुलमें जन्म पाने के बाद विरोधी वातावरण के बावजूद भी दृढ़तापूर्वक प्रभुदर्शन एवं जिनपूजाके नियमका पालन करनेवाले रीजुमलजीका दृष्टांत अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय है ।
शंखेश्वरजी तीर्थमें अनुमोदना समारोहमें निमंत्रण को स्वीकार करके वे उपस्थित रहे थे, उस समयकी तस्वीर प्रस्तुत पुस्तकमें पेज नं. 16 के सामने प्रकाशित की गयी है ।
सं. २०५४ का हमारा चातुर्मास बाड़मेर में हुआ, तब रीजुमलजी के जीवनको नजदीक से देखने का अवसर मिला । अब तो उनके परिवार के सदस्य भी जैनधर्मानुरागी बन गये हैं ।
पता : रीजुमलजी नथमलजी खत्री, आझाद चौक, बाडमेर (राजस्थान) पिन : ३४४००१.
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जैन धर्मकी आराधना एवं माताकी सेवाके लिए अविवाहित रहनेवाले सरदार पप्पुभाई
महाराष्ट्रमें पुना जिले के खड़की गाँवमें रहते हुए सरदारजी