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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ महा भाग्योदयसे मिले हुए चिंतामणि रत्नसे भी अधिक महिमावंत जैन धर्म को तो किसी भी किंमत पर नहीं छोडूंगा ।
आखिरमें वह पैतृकी संपत्ति की अपेक्षा छोड़कर अलग रहने लगा और अपना नाम परिवर्तन करके अनुमोदनीय रूपसे जैन धर्मका पालन करने लगा ।
इस तरह प्रसिद्ध नहीं होने की उसकी भावना को ध्यानमें रखते हुए उसका नाम एवं पता यहाँ पर नहीं दिया गया है ।
दिन-रात पैसे के पीछे अंधी दौड़ के कारण, जन्मसे ही संप्राप्त जिनशासनकी अनमोल आराधना की उपेक्षा करनेवाले एवं धनके लिए अपने भाई और पिताके सामने अदालतमें दावा करनेवाले लोग इस दृष्टांतमें से प्रेरणा लेकर महापुण्योदय से संप्राप्त श्रीजिनशासनकी महिमा को समझकर उसकी आराधना करनेमें लीन हो जायें तो कितना सुंदर ! प्रभुकृपासे सभीको ऐसी सन्मति मिले यही हार्दिक शुभाभिलाषा ।
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विरोध के बावजूद भी हररोज जिनदर्शन और पूजा करनेवाले गेजुमलजी नथमलजी खत्री ( पुलिस )
बाड़मेर (राजस्थान) में पुलिसकी फर्जको अदा करते हुए रीजुमलजी खत्री (उ. व. ५८) के जीवनमें आजसे २० साल पहले माँस, मदिरा, धूम्रपान आदि व्यसनोंने अड्डा जमाया था, मगर खरतरगच्छीय पू. मुनिराज श्री विमलसागरजी म.सा. के व्याख्यान-श्रवण और सत्संगसे उनके जीवनकी दिशा बदली । उन्होंने सभी व्यसनोंका संपूर्ण त्याग किया । इतना ही नहीं परंतु हररोज जिनमंदिर में जाकर प्रभुदर्शन एवं जिनपूजाका भी प्रारंभ कर दिया । धर्म के प्रभावसे उनकी आर्थिक परिस्थितिमें भी सुधार होने लगा । मगर उस समय बाड़मेरमें जिन मंदिरमें दर्शन करनेवाला एक भी जैनेतर नहीं था, इसलिए उनके घरमें एवं समाजमें उनको भारी विरोधको झेलना पडा । खुद उनकी धर्मपत्नीने भी आत्महत्या करनेकी