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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
एक ही द्रव्य से ठाम चौविहार ५० ओलीके आराधक श्री दानुभाई रवाभाई गोहील (दरबार)
.. प.पू. आ.भ. श्री विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी म.सा., प.पू.आ.भ. श्री विजय मानतुंगसूरीश्वरजी म.सा., प.पू.आ.भ. श्री विजय पुण्यपालसूरीश्वरजी म.सा., प.पू.आ.भ. श्री विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा., प.पू. मुनिराज श्रीकांतिविजयजी म.सा. आदि के प्रवचन श्रवण एवं सत्संग से पिछले ४२ वर्षों से जैनधर्म की विशिष्ट कोटिकी आराधना करनेवाले श्री दानुभाई दरबार (राजपूत) (उ. व. ७३) के जीवनकी विशेषताओं का परिचय हमें सं. २०४९में पोष महिनेमें सुरेन्द्रनगरमें ही हुआ ।
श्रावक कुलमें उत्पन्न होने के बावजूद भी एवं प्रतिदिन जिनपूजा, तपश्चर्यादि आराधना करनेवालोंमें से भी, हररोज उभयकाल प्रतिक्रमण करनेवाले श्रावक श्राविकाओं की संख्या का आज उत्तरोत्तर हास होता जा रहा है, तब राजपूत कुलोत्पन्न श्रीदानुभाई दरबार की धर्म क्रियाओं के प्रति रुचि सचमूच प्रेरणादायक एवं अत्यंत अनुमोदनीय है।
वे प्रतिदिन सुबह शाम उपाश्रय में आकर प्रतिक्रमण करते हैं। राई प्रतिक्रमण करनेवाले जब कोई भी नहीं होते हैं तब वे अकेले भी प्रातः कालमें प्रतिक्रमण अचूक करते हैं ।
___ प्रतिदिन भावोल्लासपूर्वक जिनपूजा करनेवाले दानुभाई सुरेन्द्रनगर के सभी जिनालयों के दर्शन करवाने हेतु हमारे साथ सहर्ष चले थे, तब ७० साल की उम्रमें २५ वर्षीय नवयुवक की तरह अत्यंत स्फूर्तिपूर्वक हमसे आगे आगे चलते थे ।
उन्होंने वर्धमान आयंबिल तपकी ५० ओलियाँ ठाम चौविहार के साथ केवल एक एक द्रव्य से की हैं । जैसे कि कोई ओली केवल मुंगसे की है तो कोई ओली केवल खीचड़ी खाकर की है । पिछले कई सालों से चैत्र एवं आश्विन महिनेमें नवपदजी की ओली एवं महिनेमें पाँच तिथि आयंबिल करते ही हैं ।