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निसीहज्झयणं
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उद्देशक २० : सूत्र १९-२२ वीसतिराइयारोवणा-पदं
विंशतिरात्रिक्यारोपणा-पदम् बीसरात्रिकी आरोपणा-पद १९. छम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए षाण्मासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः १९. पाण्मासिक परिहारस्थान में प्रस्थापित
अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारस्थानं अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा । प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना वीसतिरातिया आरोवणा आदी विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदिमध्याव- करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य मज्झेवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं ___ -साने सार्थं सहेतु सकारणम् अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतु सहित, अहीणमतिरित्तं, तेण परं अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी सवीसतिरातिया दो मासा ।। सविंशतिरात्रिको द्वौ मासौ।
जाए। न्यून-अधिक आरोपणा न दी जाए। उसके बाद पुनः द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करने पर बीस रात दो मास की आरोपणा प्राप्त होती है।
२०. पंचमासियं परिहारहाणं पट्टविए पाञ्चमासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः २०. पाञ्चमासिक परिहारस्थान में प्रस्थापित
अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्टाणं अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारस्थानं अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना वीसतिरातिया आरोवणा आदी विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदिमध्याव- करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य मज्ञवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं साने सार्थं सहेतु सकारणम् अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, अहीणमतिरित्तं, तेण परं अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी सवीसतिरातिया दो मासा॥ सविंशतिरात्रिको द्वौ मासौ।
जाए। न्यून-अधिक आरोपणा न दी जाए। उसके बाद पुनः द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करने पर बीस रात दो मास की आरोपणा प्राप्त होती है।
२१. चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए चातुर्मासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः
अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारस्थानं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदिमध्यावमज्झेवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं साने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीणमतिरित्तं, तेण परं अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं सवीसतिरातिया दो मासा॥ सविंशतिरात्रिको द्वौ मासौ।
२१. चातुर्मासिक परिहारस्थान में प्रस्थापित
अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी जाए। न्यून-अधिक आरोपणा न दी जाए। उसके बाद पुनः द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करने पर बीस रात दो मास की आरोपणा प्राप्त होती है।
२२. तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए त्रैमासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः
अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारहाणं अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारस्थानं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी विंशतिरात्रिकी
आरोपणा मज्ञवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम्
२२. त्रैमासिक परिहारस्थान में प्रस्थापित
अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित,