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________________ उद्देशक १८ : सूत्र ७-१४ ७. जे भिक्खू जलाओ णावं थले उक्कसावेति, उक्कसावेंतं सातिज्जति ॥ वा ८. जे भिक्खू पुण्णं णावं उस्सिंचति, उस्सिंचंतं वा सातिज्जति । ९. जे भिक्खू सण्णं णावं उप्पिलावेति, उप्पलावेंतं वा सातिज्जति ।। १०. जे भिक्खू पडिणावियं कट्ट णावाए दुरुहति, दुरुहंत वा सातिज्जति ।। ११. जे भिक्खू उड्डगामिण वा णावं अहोगामिणि वा णावं दुरुहति, दुरुहंतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्खू जोयणवेलागामिणिं वा अद्धजोयणवेलागामिणिं वा णावं दुरुहति, दुरुहंतं वा सातिज्जति ।। १३. जे भिक्खू णावं आकसावेति, ओकसावेति, खेवावेति, रज्जुणा वा कति, कडुं वा सातिज्जति ।। १४. जे भिक्खू णावं अलित्तएण वा फिहएण वा वंसेण वा वलेण वा वाहेति, वातं वा सातिज्जति ।। ४१० यो भिक्षुः जलात् नावं स्थले उत्कर्षयति, उत्कर्षयन्तं वा स्वदते I यो भिक्षुः पूर्णां नावम् उत्सिञ्चति, उत्सिञ्चन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः सन्नां नावम् उत्प्लावयति, उत्प्लावयन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः प्रतिनाविकं कृत्वा नावं 'दुरुहति' (आरोहति), 'दुरुहंतं' (आरोहन्तं) वा स्वदते । यो भिक्षुः ऊर्ध्वगामिनीं वा नावं 'दुरुहति' (आरोहति), 'दुरुहंतं' (आरोहन्तं) वा स्वदते । यो भिक्षुः योजनवेलागामिनीं वा अर्धयोजनवेलागामिनीं वा नावं 'दुरुहति' (आरोहति), 'दुरुहंतं' (आरोहन्तं) वा स्वदते । यो भिक्षुः नावम् आकर्षयति, अवकर्षयति 'खेवावेति', रज्ज्वा वा कर्षति, कर्षन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः नावम् अरित्रकेन वा 'फिहएण' वा वंशेन वा 'वलेण' वा वाहयति, वाहयन्तं वा स्वदते । निसीहज्झयणं ७. जो भिक्षु नौका को जल से थल में करवाता है अथवा थल में करवाने वाले का अनुमोदन करता है। ८. जो भिक्षु जल से भरी हुई नौका का उत्सिंचन करता है (खाली करता है) अथवा उत्सिंचन करने वाले का अनुमोदन करता है। ९. जो भिक्षु कीचड़ में फंसी नौका को उससे बाहर निकालता है अथवा बाहर निकालने वाले का अनुमोदन करता है। १०. जो भिक्षु प्रतिनाविक कर नौका पर आरोहण करता है अथवा आरोहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ११. जो भिक्षु ऊर्ध्वगामिनी नौका अथवा अधोगामिनी नौका पर आरोहण करता है। अथवा आरोहण करने वाले का अनुमोदन करता है। १२. जो भिक्षु एक योजन से अधिक प्रवाह में चलने वाली अथवा आधे योजन से अधिक प्रवाह में चलने वाली नौका पर आरोहण करता है अथवा आरोहण करने वाले का अनुमोदन करता है। * १३. जो भिक्षु नौका को ऊपर की ओर खिंचवाता है, नीचे की ओर खिंचवाता है, खेवाता है अथवा रज्जु के द्वारा खींचता है अथवा खींचने वाले का अनुमोदन करता है । १४. जो भिक्षु अलित्र, प्रस्पिटक, बांस अथवा वलक (बल्ले) से नौका को चलाता है। अथवा चलाने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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