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________________ मूल सचित्तरुक्खमूल-पदं १. जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा आलोएज्ज वा पलोएज्ज वा, आलोएंतं वा पलोएंतं वा सातिज्जति ।। २. जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएति, एतं वा सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, आहारेंतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलसि ठिच्चा उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, परिद्ववेंतं वा सातिज्जति ।। ५. जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ पंचमो उद्देसो : पांचवां उद्देशक संस्कृत छाया ६. जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं उद्दिसति, उद्दिसंतं वा सातिज्जति ॥ सचित्तरुक्षमूल-पदम् यो भिक्षुः सचित्तरुक्षमूले स्थित्वा आलोकयेद् वा प्रलोकयेद् वा, आलोकयन्तं वा प्रलोकयन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः सचित्तरुक्षमूले स्थानं वा शय्यां वा नैषेधिकीं वा चेतयति, चेतयन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः सचित्तरुक्षमूले स्थित्वा अशनं वा पानं वा खाद्यं वा स्वाद्यं वा आहरति, हरन्तं वा स्वदते । यो भिः सचित्तरुक्षमूले स्थित्वा उच्चारं वा प्रस्रवणं वा परिष्ठापयति, परिष्ठापयन्तं वा स्वते । यो भिक्षुः सचित्तरुक्षमूले स्थित्वा स्वाध्यायं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः सचित्तरुक्षमूले स्थित्वा स्वाध्यायम् उद्दिशति, उद्दिशन्तं वा स्वदते । ७. जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि यो भिक्षुः सचित्तरुक्षमूले स्थित्वा सचित्त हिन्दी अनुवाद - वृक्षमूल पद १. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के पास स्थित होकर आलोकन करता है अथवा प्रलोकन करता है और आलोकन अथवा प्रलोकन करने वाले का अनुमोदन करता है। २. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के पास स्थान ( कायोत्सर्ग), शय्या अथवा निषीधिका करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। ३. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के पास स्थित होकर अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आहार करता है अथवा आहार करने वाले का अनुमोदन करता है। ४. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष पास स्थित होकर उच्चार अथवा प्रस्रवण का परिष्ठापन करता है अथवा परिष्ठापन करने वाले का अनुमोदन करता है। ५. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के पास स्थित होकर स्वाध्याय करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। ६. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के पास स्थित होकर स्वाध्याय का उद्देश करता है अथवा उद्देश करने वाले का अनुमोदन करता है। ७. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के पास स्थित होकर
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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