________________
**
भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
अतो "योगान्तसेणोन युक्तोऽधित इत्यादिना कोटि: भु (३+१) - भु (३ - १ ) = भु ( इ + १ ) 2 - भु (३ - १ ) २ २ ( इ - १) २ ( इ + १) ( इ - १ ) x २ = भु (इ े +
२इ + १) — भु (इ े - २इ + १ ) = भु× द्द े
-
1
ह े - १
इत्युपपन्नं कोट्यानयनम् । तथा कर्णः
= यो + भु = भु (इ + १) १ ( इ + १)
+
भु( इ - १) भु ( इ + १)2 + भु (इ – १) २ २ ( इ - १ )
२
( इ + १)
= भु (द्द े + २ इ + १) +
भु
(इ े - २इ + १ ) = भु (इ े + १)
(इ - १)
१
= भु_इ े+भु = भुइ’+भु + भु – भु
इ - १
इ - १
- भुX इ े ३ - भु = (भु X इ३ ) इ - भु = को x इ - भु
=
१- १
इ २
- १
भास्कराचार्येण कर्णेन भुजकोटेरानयनम्, भुजकोट्या कर्णानयनम्, कर्णकोटद्या भुजानयनञ्च कृतानि ! बाहुकर्णयोगकोटयोः ज्ञातयोः तयोः पृथक्करणं कोटिकर्णान्तरं भुजायां ज्ञातायां तत्पृथक्करणं तथा कोट्येकदेशयुत् कर्णभुजयोः ज्ञातयोः कोटिकर्णयोरानयनानि कृतानि । लम्बा बाषात्रिभुजफलानयन विषयः प्रतिपादिताः सन्ति । एवंप्रकारेण संस्कृतसाहित्ये त्रिभुज - गणितस्य विस्तारपूर्वकं वर्णनमायातमस्ति ।