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स्वप्न और उसका फल
रहस्यका उद्घाटन करने के रहस्यकी तह में पहुंचने वाले गम्भीर है कि इसकी थाह
विश्वका प्रत्येक अणु रहस्यमय है । अनादिकालसे आजतक इस लिये दार्शनिक जगत् अनवरत उद्योग करता आ रहा है, तो भी इने-गिने केवलज्ञानी ही हो सके हैं । यथार्थ में ज्ञानोदधि इस तरह विरले ही लगा पाये हैं, फिर भी अपने-अपने ढंगसे प्रत्येक विचारकने सिद्धान्त निर्णय किये हैं । प्रस्तुत स्वप्न जगत् भी उनके विवेचन क्षेत्रसे पृथक नहीं है । इनके रहस्य और महत्ताकी भी प्राच्य और पाश्चात्य दार्शनिकोंने गहरी खोज की है । यही कारण है कि स्वप्न के विषय में भी दो प्रकारकी प्रमुख विचारधाराएँ पाई जाती हैं, जिन्हें हम प्राच्य विचारधारा और पाश्चात्य विचारधारा कहते हैं । यह बात दूसरी है कि इनमेंसे भी प्रत्येक में कई उपधाराएँ फूट निकली हैं ।
प्राच्य दर्शनाचार्यों और पाश्चात्य दर्शनाचार्यों की विवेचनाप्रणाली के मूलमें यही अन्तर है, कि पहली प्रणालीकी नींव आत्माकी अमरता पर है और दूसरीकी नींव भौतिकता पर । इससे स्वप्न आन्तरिक स्वरूपमें महान् अन्तर पड़ जाता है । द्वितीय प्रणालीके विचारकों की विचार सीमा बुद्धि तत्त्व तक ही सीमित है, आजतक वे इसके परे पहुँचने में असमर्थ ही रहे हैं, और अनुमान भी यही किया जाता है कि वैज्ञानिक शक्ति आत्मतत्त्व तक पहुंचने में असमर्थ हो रहेगी । इसी भित्ति पर स्थित उनका स्वप्न सम्बन्धी विचार भी अधूरा ही रह गया है, यथार्थतः स्वप्नका सम्बन्ध आत्मासे ही है, जैसा कि प्राच्य आचार्योंने सुबोध एवं व्यावहारिक ढंग से प्रमाणित कर संसारके सामने उपस्थित किया है । प्राच्य विवेचनानुमोदित आत्माकी अमरताके सिद्धान्तसे यह स्पष्टतया सिद्ध होता है कि हमारे वर्तमान जीवनका सांस्कारिक सम्बन्ध पूर्व भवोंसे भी है, इसलिये यह स्वयं सिद्ध है कि स्वप्नपर भी पूर्वभवों के संस्कार शासन करते हैं ।
पाश्चात्य जगत् में स्वप्नके ऊपर काफी खोज की गई है, अब तक अंग्रेजी में 'अनुमानत: १००१५० पुस्तकें इस सम्बन्ध में लिखी जा चुकी हैं । वैज्ञानिकोंने अधिकांश रूपमें स्वप्न के कारणों की खोज की है, उसके फलाफलकी नहीं । अरस्तू (Aristotle) कारणोंका अन्वेषण करते हुए लिखते है कि जागृत अवस्था में जिन प्रवृत्तियोंकी ओर व्यक्तिका ध्यान नहीं जाता हैं, वे ही प्रवृत्तियाँ अर्द्धनिद्रित अवस्थामें उत्तजित होकर मानसिक जगत् में जागरूक हो जाती हैं । अतः स्वप्न में हमें हमारी छुपी हुई प्रवृत्तियोंका ही दर्शन होता है। एक दूसरे पश्चिमीय दार्शनिकने मनोवैज्ञानिक कारणोंकी खोज करते हुए बतलाया है कि स्वप्न में मानसिक जगत्के साथ बाह्य जगत्का सम्बन्ध रहता है, इसलिये हमें भविष्यमें घटनेवाली घटनाओंकी सूचना स्वप्नकी प्रवृत्तियों से मिलती है । डॉक्टर सी० जे० ह्विटवे' (Dr. C. J. whitby) ने मनोविशेष जानने के लिये देखें
१. Dreams by Henri Berg son,
२, Theam Proble, Volume, second Part 1 P,309,