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भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
"एवं मानसागरी नाम्ना सार्थकग्रंथनामकल्पनया 'मानसागर' नाम्ना केनापि व्यरचीति वक्तुं शक्यते, यः कोऽपि कर्त्ता भवतु, जैनमतावलम्बिनाऽवश्यं भवितव्यम्, बहुत्र 'श्री आदिनाथ प्रमुखा जिनेशाः स च जिनप्रसादाद्दीर्घायुर्भवतु, इत्यादि जिनस्तुतिलेखसस्वात्" ।
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अतः स्पष्ट है कि प्राचीन कालमें लौकिक जैन ग्रन्थोंका प्रचार सर्वसाधारण में था; जिससे कुछ संकीर्ण विचार वालोंने कतिपय जैन ग्रन्थोंको मंगलाचरण बदल कर अपने में मिला लिया ।
श्रीधराचार्यकी अन्य ज्योतिषविषयक उपलब्ध रचनाओं में तीन ग्रन्थ हैं - एक ज्योतिर्ज्ञानविधि या श्रीकरण, दूसरा कन्नड़ भाषा में लिखित जातक तिलक या होराशास्त्र और तीसरा इसी भाषामें लिखित लीलावती नामक ग्रन्थ है ।
जातकतिलक के सम्बन्ध में कर्णाटक भाषा के मर्मज्ञ विद्वानोंका कथन है कि यह ग्रन्थ ज्योतिषका महत्त्वपूर्ण है । श्री हीरालाल कापड़ियाने गणिततिलककी अंग्रेजी भूमिका में जैन गणित और ज्योतिषका वर्णन करते हुए इस ग्रन्थ' के सम्बन्ध में बताया है—
Besides these works in Prakrit and Sanskrit there are some works of Jaina authorship, written in Kanarese language, for instance Śrīdharācārya has composed in verses Jātakatilaka, a work of an astrological nature.
इन पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि जातकतिलक जैनाचार्य श्रीधरका एक महत्त्वपूर्ण ज्योतिषका ग्रन्थ है |
ज्योतिर्ज्ञानविधिकी एक अधूरी प्रति मूडबिद्रीके जैन शास्त्रागारसे प्रतिलिपि कराके श्री जैन सिद्धान्त भवन आरामें मँगाई गई है । इस ग्रन्थके केवल दस प्रकरण उपलब्ध हैं - संज्ञाधिकार, तिथ्यधिकार, संक्रान्ति-ऋत्वहोरात्रिप्रमाणाधिकार, ग्रहनिलयाधिकार, ग्रहयुद्धाधिकार, ग्रहणाधिकार, लग्नाधिकार, गणिताधिकार एवं मुहूर्त्ताधिकार | इसका मंगलाचरण निम्न प्रकार है
प्रणिपत्य वर्धमानं स्फुटकेवलदृष्टतत्वमीशानम् । ज्योतिर्ज्ञानविधानं सम्यक् स्वायंभुवं वक्ष्ये ॥ गोपक बालस्त्री वृद्धमतिविहीनानाम् ।
मनसा नेयं तथ्यं श्रीकरणमिदं ततो वक्ष्ये ॥
इस ग्रन्थके प्रत्येक प्रकरणान्तमें आये प्रशस्तिवाक्यमें श्रीधराचार्य ही कर्ता बताये
गये हैं
इति श्रीधराचार्यविरचिते ज्योतिर्ज्ञानविधी ध्रुवाधिकारो नाम द्वितीयः परिच्छेदः ।
१. देखें - Ganetatilaka's Introduction P X तथा विशेषके लिये कर्णाटक कवि चरिते भाग १, पृ० ७५ ।