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ज्योतिष एवं गणित किसी-किसी परिच्छेदके अम्तमें ज्योतिर्ज्ञानविधिको विशेषण और श्रीकरणको विशेष्य तथा किसी-किसीके अन्तमें ज्योतिर्ज्ञानविधि या श्रीकरण ऐसा भी मिलता है
इति श्रीधराचार्यविरचिते ज्योतिर्ज्ञानविधी श्रीकरणे संज्ञाधिकारः प्रथमः परिच्छेदः । तथा
इति श्रीधराचार्यविरचिते ज्योतिर्ज्ञानविधौ वा श्रीकरणे लग्नप्रकरणं नाम अष्टमः परिच्छेदः।
अतः यह सुस्पष्ट है कि ज्योतिनिविधिके कर्ता ही गणितसार या त्रिशतिकाके रचयिता श्रीधराचार्य हैं। जैनाजैन साहित्यमें इस नामके जितने आचार्य मिलते हैं उनका विवरण प्रस्तुत किया जाता है तथा इस विवरणपरसे पाठक स्वयं निश्चय कर सकेंगे कि गणितज्ञ श्रीधराचार्य कौन है ? श्रीधराचार्य नामके जैनेतर विद्वानोंका विवरण अजैन साहित्यमें श्रीधर नामके आठ विद्वानोंका उल्लेख मिलता है
१-यह श्रीधरपद्धति, पाशुवप्रताप, काल विधान पद्धति एवं अमरकोषकी टीका आदि ग्रन्थोंके रचयिता हैं । सुन्दरगणिकृत धातुरत्नाकरमें इनका उल्लेख मिलता है ।
२-इनका पूरा नाम श्रीधराचार्य यज्वन् बताया गया है। यह स्मृत्यर्थसार और श्रीधरीय धर्मशास्त्र नामक ग्रन्थोंके रचियता है । स्मृत्यर्थसारमें इन्होंने गोविन्दराज और तीर्थसंग्रहकारका मत उद्धृत किया है । हेमाद्रिने अपने ग्रन्थमें इनका आदर सहित उल्लेख किया है । इनके पिताका नाम विष्णु भट्ट उपाध्याय बताया गया है ।
३-इनके नामके अन्तमें 'दास' शब्द भी मिलता है। इन्होंने ईस्वी सन् १२०४ में सदुक्तिकर्णामृतकी रचना की है। इनके पिता बटुदास बंगेश्वर लक्ष्मणसेनके सेनापति और परम सुहृद् थे।
४-श्रीधर दीक्षित-यह प्रयोगवृत्ति और सामप्रयोग पद्धतिके प्रणेता है ।
५-श्रीधराचार्य--पदार्थ-धर्म-संग्रहकी टीका न्यायकन्दलीके रचयिता हैं । इन्होंने व्यवहार दशश्लोकी, सपिण्डदीपिका ये दो ग्रन्थ और बनाये हैं। इनके नामके अन्तमें भट्ट शब्द भी मिलता है। न्यायकन्दलीमें इनके पिताका नाम बलदेव, माताका अव्वोका और पितामहका वाचस्पति बताया है। इस ग्रन्थको इन्होंने पाण्डुदास नामक एक हिन्दू राजाके उत्साहसे ईस्वी सन् ९९१ में रचा है । इनका नाम भूरिसृष्टि बताया गया है।
___ महामहोपाध्याय पं० सुधाकर द्विवेदीने गणितसारके' कर्ता ज्योतिर्विद श्रीधराचार्यको और न्यायकन्दलीके कर्ता श्रीधराचार्यको एक माना है और इसी आधारपर इन्होंने अपनी गणकतरंगिणीमें भट्ट श्रीघर, श्रीधर और श्रीधराचार्य ये तीनों नाम एक ही व्यक्तिके बतलाये है । परन्तु एक भी ऐसा प्रमाण नहीं, जिससे गणक श्रीधराचार्यको न्यायकन्दलीका कर्ता माना जा सके । गणितसार या त्रिंशतिकाके अन्तमें ज्योतिविद्के रूपमें ही इनका परिचय मिलता है, १. 'गणितसार'में जैनाचार्योंका दिया नाम है, जैनोंमें इस नामके गणित सम्बन्धी कई ग्रन्थ
लिखे गये हैं।