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[ ४ ] साहित्यके अन्तर्गत, संस्कृत, प्राकृत एवं हिंदीकी साहित्यिक विधाओंका समीक्षात्मक अध्ययन है। उसमें जो सत्रह निबन्ध है वे इस प्रकार हैं :
१. हिन्दी जैनकाव्योंमें प्रकृति-चित्रण २. हिन्दी जैन साहित्यमें अलंकार-योजना ३. हिन्दी जैन साहित्यको शाहाबादका अवदान, ४. हिन्दी जैन साहित्य, ५. प्राकृत-काव्यका उद्भव एवं विकास, ६. प्राकृत-कथा साहित्य और उसकी विशेषताएँ, ७. जैन-कोशसाहित्य, ८. जैन-व्याकरण साहित्य, ९. कवीश्वर मानतुङ्ग, १०. जैन-संस्कृत काव्य समीक्षात्मक अध्ययन, ११. संस्कृत साहित्यके सांकेतिक शब्द, १२. संस्कृत कोश-साहित्यको आचार्य हेमचन्द्रकी अपूर्व देन, १३. संस्कृतके ऐतिहासिक नाटकोंका अनुशीलन, १४. भट्टारक युगीन जैन संस्कृत साहित्यको प्रवृत्तियां, १५. महाकवि कालिदासः आधुनिक परिवेशमें, १६. कालिदासस्य राष्ट्रिय भावना,
१७. मेघदूतस्य समस्यापूात्मकं पार्वाभ्युदयकाव्यम् । जैन-धर्म-दर्शनके अन्तर्गत जो सात निबन्ध हैं वे इस प्रकार है :
१. पुष्पकर्म तथा देव पूजा विकास और विधि, २. जैनदर्शनकी मौलिक अवधारणाएँ, ३. अहिंसा और पांच जैनाचार्य, ४. प्रमुख दिगम्बर जैनचार्योका विवरण, ५. विद्वत्परिषद्का दायित्व एवं जैन सिद्धान्त, ६. दिगम्बर जैन संस्कृत-पूजाएंः एक अनुचिंतन, ७. भगवदी-आराहणाए वसधि-वियारो,
प्रस्तुत ग्रंथके प्रथम खण्डका सुधीजनोंने अच्छा स्वागत किया। इसके प्रकाशमपर हर्ष व्यक्त करते हुए सागर विश्वविद्यालयके तत्कालीन कुलपति डॉ० प्रफुल्ल कुमार मोदीने लिखा था
"डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्रीकी इस कृतिका अवलोकन कर प्रसन्नता हुई। प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी एवं भोजपुरी भाषाओंके भाषावैज्ञानिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विवेचनके साथ जैनधर्म एवं दर्शनके विविध तत्त्वोंपर सप्रमाण प्रकाश डाला गया है। यह कृति निःसंदेह भारतीय संस्कृति, साहित्य, भाषा एवं दर्शनके क्षेत्रमें शोधके नए मार्गोका उद्घाटन करेगी।"
इसी प्रकार सागर विश्वविद्यलयके प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभागके