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इसके पश्चात् परिषद्के शिवपुरीके 'रजत जयन्ती अधिवेशन' के अवसरपर 'रजत जयन्ती पत्रिका-१९७३' का प्रकाशन हुआ। इसमें १९७३ तकके परिषद्के अधिवेशनों, प्रस्तावों, पुरस्कारों तथा कार्योंका सविस्तार सचित्र वर्णन है। विद्वत्परिषद्के इतिहासकी दृष्टिसे यह महत्त्वपूर्ण, अतिसुन्दर एवं संग्रहणीय प्रकाशन है ।
तत्पश्चात् १९७४ में, विद्वत्परिषद्के प्राण, सन्तप्रवर, क्षुल्लक श्री गणेशप्रसाद जी वर्गीके जन्म शताब्दी समारोहके अवसरपर 'श्री गणेश प्रसाद वर्णी स्मृति ग्रन्थ' प्रकाशित किया गया । यह ग्रन्थ वर्णी जी के जीवन और अवदानकी दृष्टिसे अतिशय महत्त्वपूर्ण है।
भगवान् महावीरके २५००वें निर्वाण-महोत्सवके अवसरपर परिषद्ने जो अपनी साहित्य-श्रद्धाञ्जलि समर्पितकी वह समग्र भारतीय-साहित्यके क्षेत्रमें सदैव स्मरणीय रहेगी; और वह है 'तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा' का चार खण्डोंमें प्रकाशन । लगभग २००० पृष्ठोंके इस विशालकाय ग्रन्थमें जैनधर्म और दर्शनके विकास और महनीय योगदानके ढाई हजार वर्षोंका इतिहास सरक्षित है। इस ग्रन्थके लेखक स्वनामधन्य स्व० डॉ नेमिचन्द्र शास्त्री जी हैं । इस ग्रन्थके लेखनमें शास्त्री जी ने पांच वर्ष तक न केवल अकयनीय परिश्रम किया, किन्तु सच बात तो यह है कि उन्होंने अपनेको इस यज्ञमें होम दिया। फलतः नवम्बर १९७४ में इस ग्रन्थ के प्रकाशन लगभगके दश माह पूर्व, वे अपनी चिरयात्रापर प्रयाण कर गए ।
डॉ. नेमिचन्द्र जी शास्त्री विलक्षण प्रतिभाके धनी थे। उन्हें साहित्य-प्रणयनका व्यसन था । अपने शरीर और स्वास्थ्यके प्रति निर्मम होकर वे सतत् साहित्य-साधनामें संलग्न रहे । विद्वत्परिषद्की समस्त गतिविधियोंमें डॉ० शास्त्रीका निरन्तर सहयोग प्राप्त होता रहा । वे इसकी प्रगतिके लिए सदैव कार्य करते रहे । यही कारण है कि विद्वत्परिषद्ने उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकाशित करनेके निमित्त, उसके समस्त अप्रकाशित साहित्यको प्रकाशित करने का निर्णय लिया।
म. नेमिचन्द्र जी द्वारा लिखित तथा अद्यावधि अप्रकाशित साहित्य विपुल मात्रामें है। इसलिए उसे पृथक्-पृथक् दो खण्डोंमें प्रकाशित करनेका निर्णय किया गया ।
पूर्व प्रकाशित इस ग्रन्थके प्रथम खण्डमें तीन भाग हैं-भाषाविज्ञान, साहित्य एवं जैनधर्म-दर्शन । भाषाविज्ञानके अन्तर्गत संस्कृत, प्राकृत एवं भोजपुरी भाषाओंका भाषा वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन है । उसमें जो सात निबन्ध है वे इस प्रकार है :
१. प्राकृत भाषाका सांस्कृतिक-अध्ययन, २. भोजपुरी भाषामें प्राकृत-तत्त्व, ३. अशोककालीन भाषाओंका भाषा शास्त्रीय सर्वेक्षण, ४. देशीनाममालाः भाषाशास्त्रीय व सांस्कृतिक-अध्ययन, ५. सक्कय-अज्झयणत्यं पाइय-अज्झयणस्सावसिगदा उवजोगिदा य, ६. संस्कृतके सर्वाङ्गीण अध्ययमहेतु प्राकृतके अध्ययनकी उपयोगिता, ७. वर्ष-विकासकी प्रक्रिया कुछ शब्द ।