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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
६. चन्द्रोद्गमन दर्शन और सूर्योद्गमनदर्शनका अभिनय । ७. चन्द्रागम दर्शन और सूर्यागम दर्शनका अभिनय । ८. चन्द्रावरण दर्शन और सूर्यावरण दर्शनका अभिनय । ९. चन्द्रास्तदर्शन और सूर्यास्तदर्शनका अभिनय ।
१०. चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नागमण्डल, यक्षमण्डल, भूतमण्डल, राक्षसमण्डल बोर गन्धर्वमण्डलके भावोंका अभिनय ।
११. द्रुत, विलम्बित अभिनय इसमें वृषभ और सिंह तथा अश्व और गजकी ललित गतियोंका अभिनय किया जाता है ।
१२. सागर और नागरके आकारोंका अभिनय । १३. नन्दा और चम्पाका अभिनय । १४. मत्स्याण्ड, मकराण्ड, जार और मारकी आकृतियोंका अभिनय । १५. कवर्गकी आकृतियोंका अभिनय । १६. चवर्गकी आकृतियोंका अभिनय । १७. टवर्गकी आकृतियोंका अभिनय । १८ तवर्गकी आकृतियोंका अभिनय । १९. पवर्गकी आकृतियोंका अभिनय । २०. अशोक, आम्र, जम्बू, कोशम्बके पल्लवोंका अभिनय ।
२१. पद्मनाग, अशोक, चम्पक, आम्र, वन, वासन्ती, कुन्द, अतिमुक्तक और श्यामलताका अभिनय ।
२२. द्रुतनाट्य । २३. विलम्बित नाट्य । २४. द्रुतविलम्बित नाट्य । २५. अञ्चित । २६. रिभित। २७. अञ्चिरिभित । २८. आरभट्ट । २९. भसोल (भ्रमरनाठ्य) ३०. आरभट्टभसोल ।
३१. उत्पात, निपात, संकुचित, प्रसारित, रेचक, रेचित, भ्रान्त और सम्भ्रान्त क्रियाओंसे सम्बन्धित अभिनय ।
३२. तीर्थकरके पञ्चकल्याणकोंका अभिनय ।
इसी ग्रन्थमें उत्क्षिप्त, पादान्त, मन्द और रेषित गीतके भेद भी भाये है । इन गीतोंका गायन सप्तस्वर, अष्टरसयुक्त, छहदोष रहित और आठ गुण सहित किया जाता था। वाद्योंके अनेक उल्लेख, कल्पभाष्य, भगवतीसूत्र, जीवाभिगमसूत्र, जम्बूहीपप्रज्ञप्ति, भनुयोग द्वारसूत्र और निर्णय सूत्रमें आये हैं । संगीतके सिद्धान्तोंको अवगत करनेके लिये अनुयोगद्वारसूत्र विशेष उपयोगी है। बताया है