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भक्ति, संगीत एवं ललित कलाएँ
सज्जे रिसहे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे । धेवए चेव नेसाए, सरा सत्त विआहिया ॥ एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पराणत्ता, तं जहा
सज्जं च अग्गजीहाए, उरेण रिसहं सरं । कंठुग्गएण गंधारं, मज्झजीहाए मज्झिमं ॥ नासाए पंचमं बूआ, दंतोट्टेण अ घेवतं । भमुहक्खेवेण सायं, सरट्ठाणा वि आहिआ ॥ सत्तसरा जीवणिस्सिआ पण्णत्ता,
तं जहा
सज्जं रवइ मऊरो, कुक्कुडो रिसभं सरं । हंसो रवइ गंधारं, मज्झिमं च गवेलगा ॥ अह कुसुम-संभवे काले, कोइला पंचमं सरं । छट्ठे च सारसा कुंचा, नेसायं सत्तमं गओ ॥ सत्तसरा अजीवणिस्स पण्णत्ता, '
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अर्थात् षड्जस्वरका उच्चारण अग्र जिह्वासे होता है । उरसे ऋषभ, कण्ठसे गान्धार, मध्यम जिह्वा से मध्यम, नाकते पञ्चम, दन्तोष्ठसे धैवत और भ्रूविक्षेपसे निषाद स्वर निक
है।
मयूरकी ध्वनिके समान षड्ज, मुर्गाकी ध्वनिके समान ऋषभ, हंसकी ध्वनिके समान गान्धार, मेषकी ध्वनि के समान मध्यम, वसन्त ऋतुमें बोलनेवाली कोकिला के समान पञ्चम, सारसको ध्वनिके समान धैवत और गज ध्वनिके समान निषाद स्वर होता है ।
are safaयोंसे निकलने वाले स्वरोंका वर्णन करते हुए लिखा है- मृदङ्ग ध्वनिसे षड्ज, गोमुखी वाद्यसे ऋषभ, शंखसे गान्धार, झालर से मध्यम, गोधिका नामक वाद्य विशेषसे पञ्चम स्वर, आडम्बर नामक वाद्यसे धैवत और महाभेरीसे निषाद स्वर तुल्यता रखता है । गीत, वाद्य और स्वरोंकी विशेषताओंका वर्णन करते हुए बताया है कि षड्ज स्वरसे गायन आरम्भ करनेपर श्रोताओंको विशेष रुचि होती है और इस स्वरके गाने में नारियाँ प्रवीण होती हैं । ऋषभ स्वरसे गायन आरम्भ करनेपर यश, कीर्ति प्राप्त होती है । गान्धार स्वरसे गीत आरम्भ करनेपर विद्याओं और कलाओंकी प्राप्ति होती है । मध्यम स्वरसे गीत आरम्भ करनेपर सुखशांति, पञ्चम स्वरसे गीत आरम्भ करनेपर भी आनन्दकी प्राप्ति होती है । धैवत और निषाद गीत आरम्भ करनेमें त्याज्य हैं । सप्त स्वरोंके तीन ग्राम बतलाये गये हैं- षड्ज ग्राम, मध्यम ग्राम और गान्धार ग्राम । षड्ज ग्रामकी सात मूर्च्छनाएँ भी बतलायी हैं और उनके नाम भी दिये हैं । मध्यम ग्रामकी भी सात मूर्च्छनाएँ हैं और गान्धार ग्रामकी भी सात मूर्च्छनाएँ बतयी हैं । इस प्रकार २१ मूर्च्छनाओंका नाम निर्देश आया है ।
१. अनुयोगद्वार सूत्र, व्यावर संस्करण, सूत्र १२७ ॥
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