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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान बलिदडेमलेदडे मलपर तलेयोल्बालिडुवनुदितमयरसवसदि।
बलियद मलेयद मलपर तलेयोल्कैयिडुवनोडने विनयादित्यं ।' होयसल नरेशोंमें विष्णुवर्धन भी जैन शासन का प्रभावक हुआ । उसने जैनगुरु श्रीपाल विद्य देवका सन्मान किया, मन्दिरोंका जीर्णोद्धार कराया एवं व्यवस्थाके हेतु दान दिया। बेल्लूरके एक अभिलेख में मल्लि जिनालयको भी दान देनेका उल्लेख है। इससे इस बातकी पुष्टि होती है कि सन् ११२९ ई० में भी राजा विष्णुवर्धन जैन धर्मका अनुयायी था। हलेबीडके निकट बस्ति हल्लिके पार्श्वनाथ जिनालयसे प्राप्त अभिलेखसे ज्ञात होता है कि विष्णुवर्धनने हलेवीडके पार्श्वनाथ चैत्यालयके लिए दान दिया था।
अनेक सामन्तोंने भी जैनधर्म के अभ्युदय के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं। राष्ट्रकूट सामन्त लोकादित्य ने शक ९वीं शताब्दीमें ग्रन्थ निर्माण, मन्दिर निर्माण एवं जीर्णोद्धार आदिके कार्योंमें पूर्ण योगदान दिया है । यह बंकेयरसका पुत्र था और राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय अकालवर्षके शासनके अन्तर्गत वनवास देशके बंकापुरका शासक था। इसके संरक्षणमें लोकसेनने गुणभद्र कृत उत्तर पुराणके अन्तमें प्रशस्ति लिखी है। प्रशस्ति के ३२ से ३६वें तकके पद्यमें कहा है कि जब अकालवर्षके सामन्त लोकादित्य बंकापुर राजधानी के सारे बनवास देशका शासन करते थे तब शक संवत् ८२० में इस पुराणकी पूजा की गयी। इससे सिद्ध होता है कि लोकसेन गुणभद्रका प्रमुख शिष्य था और लोकादित्यने जैनधर्मकी वृद्धि में योगदान दिया था ।
दक्षिण भारतमें जैन धर्म को सुदृढ़ बनानेमें जिनदत्त रायका भी हाथ है । इसने जिनदेवके अभिषेकके लिए कुम्भसिकेपुर गांव प्रदान किया था। तोला पुरुष विक्रमशान्तरने सन् ८९७ ई० में कुन्दकुन्दान्वयके मौनी सिद्धान्त भट्टारकके लिए वसतिका निर्माण कराया था। और उसे बाहुबलिको भेंट कर दिया था। भुजबल शान्तरने अपनी राजधानी पोम्बुच्चमें भुजबल शान्तर जिनालयका निर्माण कराया था और अपने गुरु कनकनन्दि देवको हरबरि ग्राम प्रदान किया था। उसका भाई नन्नि शान्तर भी जिन चरणोंका पूजक था । वीर शान्तर के मन्त्री नगुल रसने भी अजितसेन पण्डित देवके नामपर एक बसदिका शिलान्यास कराया था। यह नई बसदि राजधानी पोम्बुच्चमें पंच बसदिके सामने बनवाई गयी थी। भुजबल गंग पेरम्माडि वर्मदेव (सन् १११५ ई०) मुनिचन्द्रका शिष्य था और उसका पुत्र नन्निय गंग (सन् ११२२ ई०) प्रभाचन्द्र सिद्धान्तका शिष्य था। शिमोगा जिलेके कल्लूर गुड्डमें सिद्ध श्वर मन्दिरके पाससे प्राप्त एक अभिलेखमें भुजबल गंग वर्मदेवके धार्मिक कृत्यों का रोचक वर्णन दिया है। उसने एक बसदिका निर्माण कराकर उसे कुछ ग्राम प्रदान किये थे। इस बसदिके सम्बन्धमें बताया है-"यह वही बसदि है जिसकी स्थापना गंगवंशके संस्थापक दडिग और माधवने की थी तथा जिसे गंगराजाओंने बराबर भेंटें प्रदान की थीं। भुजबल गंगके समयमें यह बसदि समस्त बसदियोंमें प्रधान मानी जाती थी। ११२२ ई० में उसके पुत्र नन्निय गंगने उसे पाषाणसे निर्मित कराया और भूमि प्रदान की। नन्निय गंगने जैन धर्मको अत्युन्नतिके १. जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, अभिलेख संख्या ४९२, पृ० ३०५ २. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० १४२