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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति सुव्रतनाथके चार कल्याणोंसे पवित्र है। पांचों पर्वतोंमें प्रथम पर्वतका नाम ऋषिगिरि हैं । यह पर्वत चतुष्कोण है और पूर्व दिशामें स्थित है । दूसरा पर्वत वैभरगिरि है जो त्रिकोणाकार दक्षिण दिशामें स्थित है । तीसरा पर्वत विपुलाचल है । यह पर्वत दक्षिण और पश्चिमके मध्य में है और वैभारगिरिके समान त्रिकोण है । चौथा बलाहक पर्वत है और इन्द्रधनुषके समान तीनों दिशाओं में व्याप्त है। पांचवें पर्वतका नाम पाण्डुक है यह गोलाकार पूर्व दिशामें स्थित है । ये समस्त पर्वत नाना प्रकारके फलफूलोंसे युक्त मनोहर और सुरम्य है।' जैन-साहित्यमें राजगिरि
राजगृहका वर्णन धवलाटीका,२ जयधवलाटीका, तिलोयपण्णति, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पद्मपुराण, महापुराण, णायकुमार चरिउ, जम्बू स्वामी चरित्र, गौतम स्वामी चरित्र, भद्रबाहुचरित्र,° श्रेणिक चरित्र, उत्तर पुराण', हरिवंश पुराण,१२ आराधना कथाकोष पुण्यास्रवकथाकोष१४ मुनिसुव्रतकाव्य, धर्मामृत, अणुत्तरोवाई, दशांगसूत्र, आचारांग,१७ अंतगडदशांग," भगवतो सूत्र, सूत्रकृतांग,१९ उत्तराध्ययन,२° ज्ञाताधर्म कथांग," और १. हरिवंश पुराण सर्ग ३ श्लो० ५१-५७ २. धवलाटोका प्रथम भाग ६१-६२ ३. जयधवला टीका४. तिलोय पण्णति अ० ४ आ० ५४५ तथा अधिकार प्रथम गाथा ६६-६७ ५. रत्नकरण्डश्रावकाचार श्लो० १२० ६. तत्रास्ति सर्वतः कांत नाम्ना राजगृहे पुरे । कुसुमोपमसुभगं भुवनस्यैव यौवनम ।।
-पद्मपुराण ३३।२ तथा पर्व २ श्लो० ११३ ७. महापुराण पर्व १ श्लो० १९६ ८. तहिं पुरुवरुणामे कणयरण कोदिहिं घडिड ।
बलिवंइ धरंत हो सुख इहिं णं सुरणयरु गयण पडिउ ॥ -णायकुमार चरिउ । ९. जम्बूस्वामीचरित पर्व श्लो० १३ पर्व ७ १०. आरंभिक अंश पृ० २-३ ११. उत्तरपुराण पर्व ७६ श्लो० ३८६ पर्व ६७ श्लो० २०-४७, १२. हरिवंश पुराण सर्ग २ श्लो० १४६-५० तथा सर्ग ३ श्लो० ५१-५८ १३. आराधना कथाकोष भाग १ पृ० १०५, १४९, १५०, १४. पुण्यास्रव कथाकोष पृ० २७, २२०, २१०, १५. धर्मामृत आरम्भ भाग पृ० ५६-५७ तथा वारिषेण कुमारका कथा भाग, १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे गाम णयरे होत्था सेणियनामं राया होत्था चेलना देवीए
गुणसिलाय घट्टए वण्णओ "अणुत्तरोबवाई सूत्र १७. आचारांग पृ० १६-१७, ५२, ५३ इत्यादि १८. अन्तगडांग हैदराबाद सं० १० ४८ १९. रायगिहे नयरे जेणेव नालिन्दा....."भगवती सूत्र २०. हैदराबाद संस्करण पृ० ५३३ २१. महानिर्ग थाय ५ वा आख्यान