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________________ 84 जैन श्रमण : स्वरुप और समीक्षा तपागच्छ में भी अनेकों गच्छों की स्थापना हुयी जो निम्नतः है(1) वृद्ध पोसालिक तपागच्छ (2) लघु पोसालिक तपागच्छ ( 3 ) देवसूरि गच्छ (4) आनन्द सूरि गच्छ ( 5 ) सागर गच्छ (6) विमल गच्छ (7) संवेगी गच्छ। पार्श्व गच्छ वि.सं. 1515 में तपागच्छ पृथक होकर आचार्य पार्श्वचन्द ने इस गच्छ की स्थापना की। वे नियुक्ति, तथा चूर्णि और छेद ग्रन्थों को प्रमाण कोटि में नहीं रखते थे। इसी प्रकार कृष्णर्षि का "कृष्णर्षि गच्छ" भी तपागच्छ की ही शाखा के रूप में ही प्रसिद्ध था। आंचल गच्छ उपाध्याय विजयसिंह सूरि (आर्यरक्षित सूरि) ने 1166 ई. में "मुखपट्टी" के स्थान पर अंचल (वस्त्र का छोर) के उपयोग करने की घोषणा की इसीलिए इसे अंचल गच्छ कहते हैं। पूर्णिमा एवं सार्ध पूर्णिमिया गच्छ___ आचार्य चन्द्रप्रभ सूरि ने प्रचलित क्रियाकाण्ड का विरोध कर पौर्णमयकगच्छ की स्थापना की। वे महानिशीथ सूत्र को प्रमाण नहीं मानते थे। कुमारपाल के विरोध के कारण इस गच्छ का कोई विशेष विकास नहीं हो पाया। कालान्तर में 1179 ई. में सुमतिसिंह ने इसका उद्धार किया, इसलिए इसे सार्थ पौर्णमीयक गच्छ कहा जाने लगा। आगमिक गच्छ इस गच्छ के संस्थापक शीलगुण और देवभद्र पहले पौमियक थे। बाद में आंचलिक हुए और फिर 1193 में आगमिक हुए। वे क्षेत्रपाल की पूजा को अनुचित बताते थे। सोलहवीं शती में इसी गच्छ की एक शाखा कटुक नाम से प्रसिद्ध हुयी। इस शाखा के अनुयायी केवल श्रावक थे। इन गच्छों के अतिरिक्त और भी अनेकों गच्छों के उल्लेख मिलते हैं जिनकी स्थापनाएं प्रायः 10-11 वीं शताब्दी के बाद राजस्थान में हुयीं जिन स्थापनाओं के पीछे छोटे-मोटे कारण ही थे। जिनमें कुछ का सम्बन्ध स्थानों से है तो कुछ का कुल से, गच्छ अधिकांश किसी न किसी आचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। प्रत्येक गच्छ की श्रमणचर्या लगभग पृथक-पृथक ही रही है। इन गच्छों में आजकल खरतरगच्छ तपागच्छ और आंचलिक गच्छ ही अस्तित्व में हैं। ये सभी गच्छ मन्दिर-मार्गी और मूर्तिपूजक रहे हैं। मूर्ति पूजा के विरोध में श्वेताम्बर सम्प्रदाय में कुछ सम्प्रदाय उठ खड़े हुए, जिनमें स्थानकवासी और तेरापन्थी प्रमुख हैं।144
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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