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________________ जैन श्रमण के भेद-प्रभेद करने वाला पुलाक होता है | 33 श्वेताम्बरीय आगम स्थानांग में पुलाक के 5 भेद किये हैं जैसे (1) ज्ञानपुलाक ज्ञान के स्खलित, मिलित आदि अतिचारों का सेवन करने वाला । (2) दर्शन पुलाक - शंका, कांक्षा, आदि सम्यक्त्व के अतिचारों का सेवन करने वाला । चारित्र पुलाक- मूलगुणों और उत्तरगुणों में दोष लगाने वाला । ( 3 ) (4) लिंग पुलाक - शास्त्रोक्त उपकरणों से अधिक उपकरण रखने वाला, जिनलिंग से भिन्न लिंग या वेष को कभी-कभी धारण करने वाला । - ( 5 ) यथासूक्ष्म पुलाक प्रमादवश अकल्पनीय वस्तु को ग्रहण करने का मन में विचार करने वाला । 2. बकुश - जो निर्ग्रन्थ अवस्था को प्राप्त हैं, मूलगुणों को निरतिचार पालते हैं, शरीर और उपकरण की शोभा के अनुवर्ती हैं, श्रृद्धि, और यश की कामना करते हैं, परिवार शिष्यों से घिरे हुए हैं, और छेद से जिनका चित्त शबल / चित्रित है, वे मुनि वकुश कहलाते हैं। पूज्यपाद स्वामी ने "इन्हें विविध प्रकार के मोह से युक्त कहा है। 34 इनके सामायिक और छेदोपस्थापना ये दो संयम होते हैं । उत्कृष्ट रूप से इनका ज्ञान अभिन्न दश पूर्व तक हो सकता है और जघन्य से अष्ट प्रवचन मातृका मात्र ज्ञान रह सकता है। यथासूक्ष्मवकुश (186 सूत्र ) 291 1 वकुश मुनि के दिगम्बर परम्परा में दो भेद किये हैं- उपकरण वकुश और शरीर वकुश। उपकरणों में जिनका चित्त आसक्त है, जो नाना प्रकार के विचित्र परिग्रहों से युक्त हैं, बहुत विशेषता से युक्त उपकरणों के आकांक्षी हैं, उनका संस्कार और प्रतिकार को करने वाले हैं। ऐसे साधु उपकरण वकुश कहलाते हैं। तथा शरीर के संस्कार को करने वाले शरीर वकुश कहे जाते हैं। श्वेताम्बरीय आगम स्थानांगसूत्र में वकुश के पाँच भेद किये हैं, जो दो भेदों के ही प्रकारान्तर हैं। वे निम्न भेद हैं 1. आभोग वकुश जानबूझ कर शरीर को विभूषित करने वाला । अनजान में शरीर को विभूषित करने वाला । 2. अनाभोग वकुश 3. संवृत वकुश - लुक - छिपकर शरीर को विभूषित करने वाला । 4. असंवृत वकुश प्रगट रूप से शरीर को विभूपित करने वाला । 5. - - प्रगट या अप्रगट रूप से शरीर आदि की सूक्ष्म विभूषा करने वाला
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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