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________________ 292 जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा 3. कुशील - कुशील मुनि के दो भेद किये गये हैं। (1) प्रतिसेवना कुशील (2) कषाय कुशील। जिसके शरीरादि तथा उपकरणादि से पूर्ण विरक्तता न हो और मूलगुण तथा उत्तरगुणों की परिपूर्णता हो परन्तु उत्तरगुण में क्वचित्-कदाचित् विराधना होती हो उसे प्रतिसेवना कुशील कहते हैं, और जिसने संज्वलन कषाय के सिवाय अन्य कषायों को जीत लिया हो उसे कपाय कुशील कहते हैं। श्वे. स्थानांग सूत्र 187 में ज्ञान, दर्शन, चारित्र लिंग और यथासूक्ष्म के भेद से कुशील के 5 प्रकार कहे हैं। 4. निर्ग्रन्थ - जिनके मोह-कर्म क्षीण हो गया है तथा जिनके मोह-कर्म के उदय का अभाव है ऐसे ग्यारहवें तथा बारहवें गुणस्थानवर्ती मुनि को निर्गन्य कहते हैं। 5. स्नातक - समस्त घातिया कर्मों के नाश करने वाले केवली भगवान को स्नातक कहते हैं। इसमें तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानवर्ती श्रमण आते हैं। ये पाँचों प्रकार के श्रमण प्रत्येक तीर्थंकरों के समय होते हैं। आचार्य उमास्वामी ने इन पुलाकादि मुनियों में भी "संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिंग, लेश्या, उपपाद और स्थान इन आठ अनुयोगों द्वारा मुनियों में और विशेष भेद किये हैं। 1. संयम - पुलाक, वकुश, और प्रतिसेवना कुशील साधु के सामायिक और छेदोस्थापना, परिहार-विशुद्धि और सूक्ष्मसांपराय, ये चार संयम होते हैं। निर्ग्रन्थ और स्नातक के यथाख्यात-चारित्र होता है। श्रुत - पुलाक, वकुश और प्रतिसेवना कुशील साधु दस-पूर्वधारी, पुलाक के जघन्य आचारांग में आचार वस्तु का ज्ञान होता है, वकुश तथा प्रतिसेवना कुशील के जघन्य अष्टप्रवचन माता, कपाय कुशील और निर्धन्य के उत्कृष्ट ज्ञान चौदह पूर्व का, जघन्य ज्ञान आठ प्रवचन माता का होता है। स्नातक तो केवलज्ञानी होते हैं। अतः वे श्रुतज्ञान से दूर होते हैं। 3. प्रतिसेवना (विराधना) - पुलाक मुनि के परवश से पंचमहाव्रतों में किसी की. विराधना, उपकरण-वकुश मुनि के कमण्डलु, पिच्छि, आदि उपकरण की शोभा की अभिलाषा के संस्कार का सेवन होता है - अतः विराधना है। वकुश मुनि के शरीर के संस्कार रूप विराधना होती है, प्रतिसेवना कुशील मुनि पाँच महाव्रत की विराधना नहीं करता, किन्तु उत्तर-गुण में किसी एक की विराधना करता है। कषाय कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक के विराधना नहीं होती है।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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