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________________ आहार चर्या (5) शबंकावर्त - शंख के आवर्तों के समान गाँव के अन्दर आवर्ताकार भ्रमण करके बाहर की ओर भ्रमण करते हुए भिक्षा मिली तो ग्रहण करूँगा अन्यथा नहीं। (6) पतंग वीथी - पतंगों की पंक्ति से अनियम क्रम से भ्रमण या उड़ने के समान भ्रमण करते हुए भिक्षा मिली तो ग्रहण करेगा। (7) गोयरिया - गोचरी नामक भिक्षा के अनुसार भ्रमण करते हुए भिक्षा लेना। (8) पाटक - इसी पाटक या मुहल्ले में भ्रमण करते हुए भिक्षा मिलेगी तो ग्रहण करूँगा। इस प्रकार एक पाटक, दो पाटक में ही प्रवेश करूँगा। (9) नियंसण - अमुक घर के परिकर से लगी हुयी भूमि में भिक्षा मिली तो स्वीकारूँगा, घर में प्रवेश नहीं करूँगा। कुछ ग्रन्थकारों का कथन है कि पाटक की भूमि में ही प्रवेश करूँगा, घरों में नहीं, इस संकल्प को पाटक-निवसन कहते हैं। (10) भिक्षा परिमाण - एक या दो बार में परोसे गये भोजन को ग्रहण करूँगा। (11) दातृ ग्रास परिमाण - एक या दो दाता के ही द्वारा देने पर भिक्षा ग्रहण करेगा। (12) पिण्डैषणा - पिण्डरूप भोजन ही ग्रहण करूँगा। (13) पानैषणा - जो बहुत द्रव होने से पीने योग्य होगा वहीं ग्रहण करूँगा। इसी प्रकार यवागु, पुग्गलया ( चना, मसूर आदि धान्य) संसृष्टशाक, कुल्माष आदि से मिला हुआ, फलिहा-मध्य में भात और उसके चारों और शाक रखा हो वैसा आहार, परिखा-मध्य में अन्न तथा इसके चारों ओर व्यंजन रखा हो तो तैसा आहार,
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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