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________________ 212 जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा (2) गोचर प्रमाण - इसके अन्तर्गत घरों के प्रमाण का संकल्प लेकर निकलने का विधान है। (3) भोजन संकल्प - काँसे, पीतल आदि धातु या मिट्टी के पात्र विशेष से भिक्षा देगा तो स्वीकार करूँगा अन्यथा नहीं। (4) अशन संकल्प - चावल आदि विविध प्रकार के अन्न में से संकल्पित अन्न या भोज्य पदार्थ विशेष मिलेगा तो आहार ग्रहण करंगा, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार और भी अनेक प्रकार के संकल्प लेकर आहारार्थ गमन करना चाहिए।155 भगवती आराधना में भी विविध प्रकार के संकल्प लेकर आहारार्थगमन करने का उल्लेख है।156 जैसे : (1) गत्वा प्रत्यागता - जिस मार्ग से पहले गया उसी से लौटते हुए यदि भिक्षा मिलेगी तो ग्रहण करूँगा अन्यथा नहीं। (2) अजुवीथि - सीधे मार्ग से भिक्षा मिली तो ग्रहण करूँगा अन्यथा नहीं। (3) गोमूत्रिका - गाय या बैल के रास्ते में चलते-चलते मूत्र-त्याग करने से जैसे बलखाते हुए आकार बनता जाता है वैसे ही बाँए पार्श्व से दाँए पार्श्व के घर और दॉए से बाँये पार्श्व जाते हुए घर में भिक्षा मिली तो ग्रहण करूँगा अन्यथा नहीं। (4) पेल्लवियं (पेठा) - वस्त्र सुवर्ण आदि रखने के लिए बाँस के पत्ते आदि से जो सन्दूक बनता है, जिस पर ढकना भी हो, उसके समान चौकोर भ्रमण करते हुए भिक्षा मिली तो ग्रहण करमा अन्यथा नहीं।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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