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________________ 196 जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा कायोत्सर्ग का काल - यह कायोत्सर्ग पंच पापों के अतिचार में, भक्त पान व गोचरी के पश्चात्, तीर्थ व निषद्या आदि की वन्दनार्थ जाने पर, लघु व दीर्घ शंका करने पर, ग्रन्थ को आरम्भ करते समय व पूर्ण हो जाने पर ईर्या- पथ दोषों की निवृत्ति के अर्थ कायोत्सर्ग किया जाता है। "कायोत्सर्ग एक वर्ष का उत्कृष्ट और अन्तर्मुहर्त प्रमाण जघन्य होता है। शेष कायोत्सर्ग दिन-रात्रि के भेद से बहुत हैं।"101 एक बार णमोकार मन्त्र के उच्चारण में तीन श्वोसाच्छ्वास होते हैं। यथा णमो अरहंताणं पद बोलकर श्वास ऊपर खींचना और णमो सिद्धाणं पद बोलकर श्वास नीचे छोड़ना ऐसा एक श्वासोच्छ्वास हुआ। ऐसे ही "णमो आयरियाणं" और "णमो उवज्झायाण" में एक श्वासोच्छ्वास तथा "णमो लोए और "सव्वसाहूण" इस पद में एक श्वासोच्छ्वास ये तीन उच्छ्वास हो जाते हैं। आगे कायोत्सर्गों के प्रमाण आचार्य ने उच्छवासों के माध्यम से बतलाया है। दैवसिक प्रतिक्रमण के कायोत्सर्ग में 108 उच्छ्वास होते हैं। अर्थात् वीर भक्ति के प्रारम्भ में 36 बार णमोकार मन्त्र जपने में 108 उच्छ्वास हो जाते हैं। रात्रिक प्रतिक्रमण के कायोत्सर्ग में 54 उच्छवास, पाक्षिक प्रतिक्रमण के कायोत्सर्ग में 300 उच्छ्वास, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में 400 तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 500 श्वासोच्छवासों में महामन्त्र का ध्यान होता है। 02 महाव्रतों के अतीचार में 108 उच्छवास का कायोत्सर्ग, भोजन पान में, ग्रामान्तर गमन में, अर्हन्त के कल्याणक स्थान व मुनियों की निषद्या वन्दना में मल मूत्र विसर्जन में पच्चीस उच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए। कायोत्सर्ग के भेद : कायोत्सर्ग के चार भेद होते है-उत्थितोत्थित, उत्थितनिविष्ट, उपविष्टोत्थित और उपविष्टनिविष्ट। जो ध्यान में खड़े होकर जिनमुद्रा से कायोत्सर्ग कर रहे हैं, और उनके परिणाम भी धर्मध्यान रूप या शुक्ल ध्यान रूप हैं, उनका वह कायोत्सर्ग उत्थितोत्थित हैं। जो कायोत्सर्ग में स्थित है परन्तु आर्त और रौद्र इन दो ध्यान को ध्याते हैं उनका यह उत्थित निविष्ट नाम कायोत्सर्ग है। जो बैठकर योगमुद्रा से कायोत्सर्ग कर रहे हैं, किन्तु अन्तरंग में धर्म-ध्यान या शुक्लध्यान रूप उपयोग चल रहा है। उनका वह कायोत्सर्ग उपविष्ट उत्थित है।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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