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________________ उत्सर्ग अपवाद मार्ग 159 उपर्युक्त "चार उपकरण अनिषद्ध उपधि अपवाद हैं, वहाँ वास्तव में ऐसा ही है कि जो श्रामण्य पर्याय के सहकारीमत कारण के रूप में उपकार करने वाला होने से उपकरण हैं. दूसरा नहीं है। स्पष्टीकरण यह है कि सहज रूप से अपेक्षित यथाजातरूप पने के कारण जो बहिरंग लिंग भूत है ऐसे काय पुद्गल,(2) जिनका श्रवण किया जाता है ऐसे तत्कालबोधक गुरू के द्वारा कहे जाने पर "आत्मतत्व द्योतक सफल उपदेश रूप वचन पुद्गल (3) तथा जिनका अध्ययन किया जाता है ऐसे नित्य बोधक, अनादिनिधन, शुद्ध आत्म तत्व को प्रकाशित करने में समर्थ श्रुतज्ञान के साधनभूत शब्दात्मक सूत्र पुद्गल और (4) शुद्धात्म तत्व को व्यक्त करने वाली जो दार्शनिक पर्यायें, उन रूप से परिणमित पुरुष के प्रति विनीतता का अभिप्राय प्रवर्तित करने वाले चित्त पुद्गल का ग्रहण भी अपवाद-मार्ग भावार्थ यह है कि जिस श्रमण की श्रामण्य पर्याय के सहकारी कारणभूत सभी कृत्रिमताओं से रहित यथाजातरुप के सम्मुख वृत्ति जाये, उसे काय का परिग्रह है, जिस श्रमण की गुरु-उपदेश के श्रमण में वृत्ति रुके, उसे वचन पुद्गल का परिग्रह है, जिस श्रमण की सूत्राध्ययन में वृत्ति रुके, उसके पुद्गलों का परिग्रह है, और जिस श्रमण के योग्य पुरुष के विनय रूप परिणाम हों उसके मन के पुद्गलों का परिग्रह है। यद्यपि यह परिग्रह उपकरणभूत है, इसलिए अपवाद मार्ग में निषेध नहीं है।170 यह अपवाद मार्ग चामुण्डराय ने उत्कृष्ट, मध्यम, एवं जघन्य के भेद से तीन प्रकार का कहा है जो मुनि वसतिका और आहार इन दोनों वाह्य साधनों को प्रासुक ग्रहण करते हैं, तथा स्वाधीन व पराधीन दोनों प्रकार के ज्ञान व चारित्र पालते हैं, ऐसे मुनि बाहर के छोटे-बड़े कीड़े आदि जीवों के मिलने पर उस देश व स्थान से अपनी आत्मा को हटा कर ( अपने आप हटकर ) उन जीवों की रक्षा कर देते हैं, इसे उत्कृष्ट संयम कहते हैं। जो मुनि ऐसे जीवों के मिलने पर पिच्छि आदि कोमल उपकरण से देखकर उन जीवा को हटा देते हैं वह मध्यम संयम है। जो कोमल उपकरण के सिवाय किसी भी अन्य उपकरण से उन जीवों को हटाने की इच्छा रखते हैं उसे जघन्य संयम कहते हैं।171 मुनि को सर्व प्रकार से अपने संयम की रक्षा करनी चाहिए। यदि संयम का पालन करने में अपना मरण होता हो तो उस समय के परिणामों को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए। समन्तभद्र के असाध्य रोग के होने पर, मुनिव्रत को छोडकर तथा गृहस्थावस्था में
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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