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## Translation:
**Verse 16:**
* **Sāmpasārikayakirīye,**
* **Pariṇāyatṇāṇi**
* **Ya.**
* **Sāgāriyam ca piṇḍa ca taṁ vijjaṁ parijāṇiyā.** || 16 ||
* **Chāyā**
* **Sāmprasārī**
**Translation:**
* **Sāmpasārikayakirīye,** (Talking about worldly matters with the unchaste)
* **Pariṇāyatṇāṇi** (Praising the actions of the unchaste)
* **Ya.** (And)
* **Sāgāriyam ca piṇḍa ca taṁ vijjaṁ parijāṇiyā.** (Knowing that taking food from the house of a householder, who is a "Sāgārika" (one who provides lodging), is a cause of worldly wandering, a wise ascetic should abandon it.) || 16 ||
* **Chāyā** (Shadow)
* **Sāmprasārī** (Expansion)
**Commentary:**
* **Sāmpasārikayakirīye:** This refers to engaging in conversations about worldly matters with those who are not practicing self-restraint.
* **Pariṇāyatṇāṇi:** This refers to praising the actions of those who are not practicing self-restraint.
* **Sāgāriyam ca piṇḍa ca:** This refers to taking food from the house of a householder who provides lodging.
* **taṁ vijjaṁ parijāṇiyā:** This means that a wise ascetic should know that these actions are causes of worldly wandering and should abandon them.
**Verse 17:**
* **Aṣṭāpadam na sikkhījjā, vehāīyaṁ caṇo vae.**
* **Hatthakammaṁ vivāyaṁ ca taṁ vijjaṁ parijāṇiyā.** || 17 ||
* **Chāyā**
* **Sāmprasārī**
**Translation:**
* **Aṣṭāpadam na sikkhījjā, vehāīyaṁ caṇo vae.** (One should not learn the Aṣṭāpada (a type of fast-paced music) or speak words that are beyond the Dharma.)
* **Hatthakammaṁ vivāyaṁ ca taṁ vijjaṁ parijāṇiyā.** (Knowing that manual labor and disputes are causes of worldly wandering, a wise ascetic should abandon them.) || 17 ||
* **Chāyā** (Shadow)
* **Sāmprasārī** (Expansion)
**Commentary:**
* **Aṣṭāpadam na sikkhījjā:** This refers to not learning the Aṣṭāpada, a type of fast-paced music that is considered to be a distraction from spiritual practice.
* **vehāīyaṁ caṇo vae:** This refers to not speaking words that are beyond the Dharma, or that are harmful or disrespectful.
* **Hatthakammaṁ vivāyaṁ ca:** This refers to manual labor and disputes, which are considered to be causes of worldly wandering.
* **taṁ vijjaṁ parijāṇiyā:** This means that a wise ascetic should know that these actions are causes of worldly wandering and should abandon them.
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संपसारीकयकिरिए,
परिणायतणाणि
य ।
सागारियं च पिंड च तं विज्जं परिजाणिया ॥ १६॥
छाया सम्प्रसारी
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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम्
कृतक्रियः प्रश्नायतनानि च ।
सागारिकञ्च पिण्डञ्च तद्विद्वान् परिजानीयात् ॥
छाया
अनुवाद - असंयमी जनों के साथ सांसारिक विषयों पर बातचीत करना, असंयम पूर्ण कार्य की तारीफ करना, ज्योतिष के सवालों का जवाब देना तथा शैय्या तर का जिसके भवन में रुके हो उसके स्वामी का आहार लेना - उसके यहां से भिक्षा लेना, यह संसार भ्रमण के कारण हैं। इन्हें जानकर विवेकशील साधु इनका त्याग करें ।
-
"
टीका - अपिच - असंयतै सार्धं सम्प्रसारणं पर्यालोचनं परिहरेदिति वाक्यशेषः एवमसंयमानुष्ठानं प्रत्युपदेशदानं, तथा 'कयकिरिओ' नाम कृता शोभना गृहकरणादिका क्रिया येन स कृतक्रिय इत्येवमसंयमानुष्ठान प्रशंसनं, तथा प्रश्नस्य- आदर्शप्र श्रादैः 'आयतनम्' आविष्करणं कथनं यथाविवक्षितप्रश्ननिर्णयनानि, यदिवा - प्रश्नायतनानि लौकिकानां परस्परव्यवहारे मिथ्याशास्त्रगतसंशये वा प्रश्रे सति यथावस्थितार्थकथनद्वारेणायतनानि-निर्णयनानीति, तथा 'सागारिकः'शय्यातरस्तस्य पिण्डम् आहारं, यदिवा- सागारिकपिण्डमिति सूतकगृहपिण्डं जुगुप्सितं वर्णापसपिण्ड वा, चशब्दः समुच्चये, तदेतत्सर्वं विद्वान् ज्ञपरिज्ञया परिज्ञाय प्रत्याख्यानपरिज्ञया परिहरेदिति ॥ १६ ॥ किञ्चान्यत्टीकार्थ संयम हीन पुरुषों के साथ लौकिक विषयों की बातें करना, विचार विमर्श करना साधु को त्याग देना चाहिए । उसे असंयम के अनुष्ठान आचरण का उपदेश नहीं करना चाहिए। जिस पुरुष ने अपने भवन आदि की शोभा सज्जा, सजावट की है साधु को उसके रस असंयम मूलक कार्य की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए । उसे ज्योतिष सम्बन्धी सवालों का जवाब नहीं देना चाहिए । अथवा लौकिक पुरुषों का आपसी व्यवहार में, उनके मिथ्यात्व मूलक शास्त्रों के सम्बन्ध में उन्हें संशय होने पर अथवा उन द्वारा प्रश्न किये जाने पर साधु को उस शास्त्र के यथार्थ मन्तव्य प्रकट कर निर्णय नहीं करना चाहिए। शैय्यातर के यहाँ से, अथवा सूतक युक्त घर से, नीच के घर से साधु पिण्ड आहार न ले । साधु ज्ञपरिज्ञा से इनको जानकर इनका परित्याग करे ।
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अट्ठावयं न सिक्खिज्जा, वेहाईयं चणो वए । हत्थकम्मं विवायं च तं विज्जं परिजाणिया ॥ १७॥
अष्टापदं न शिक्षेत वेधातीतञ्च नो वदेत् ।
हस्तकर्म विवादञ्च तत् विद्वान् परिजानीयात् ॥
अनुवाद - साधु अर्थपद - अर्थशास्त्र का अध्ययन न करे अथवा अष्टापद - द्रुतक्रीड़ा का अभ्यास न करे तथा अधर्म पूर्ण वचन न बोले । वह हस्तकर्म व विवाद न करे। विवेकशील पुरुष इनको भव भ्रमण का हेतु मानकर इनका परित्याग करे ।
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