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## The Sutra Kritanga Sutra
**Verse 15:**
* **Text:** Shri Sutra Kritanga Sutra, Maccha ya Kumma ya Sirasiva ya, Maggu ya Uttha (Dṛ) Dagarakkhasa ya. Atthaanameyam Kusala Vayanti, Udageṇa Je Siddhi Mudaharanthi. ||15||
* **Translation:** "Fish, turtles, reptiles, camels, and water demons - if liberation were achieved by merely touching water, these creatures would be the first to attain it. But this is not observed. Therefore, those who claim liberation is achieved through water are mistaken. This is what the wise, the knowledgeable, say."
**Verse 16:**
* **Text:** Udayam Jai Kammamalam Harejja, Evam Suham Icchhamittameva. Andham Va Neyaram anusaritta, Paanani Chevam Vinihamti Manda. ||16||
* **Translation:** "If water were to remove the stain of karma, then why wouldn't it also remove the stain of good deeds? To believe that liberation is achieved by touching water is merely wishful thinking. The foolish, following blind guides, kill living beings through water rituals."
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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम् मच्छा य कुम्मा य सिरासिवा य, मग्गू य उट्ठा (दृ) दगरक्खसा य। अट्ठाणमेयं कुसला वयंति, उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति ॥१५॥ छाया - मत्स्याश्च कूर्माश्च सरीसृपाश्च, मद्वश्चोष्ट्रा उदकराक्षसाश्च ।
अस्थान मेतत्कुशला वदन्त्युदकेन ये सिद्धि मुदाहरन्ति ॥ अनुवाद - यदि पानी को छूने से ही मुक्ति प्राप्त हो तो मछलियां कछवे, सरीसृप तथा रेंगने वाले अन्य जन्तु तथा जल में रहने वाले दूसरे विशालकाय जीव सबसे पहले मुक्त हो जाते, परन्तु ऐसा नहीं होता। इसलिए जो जल के स्पर्श से मोक्ष होने का प्रतिपादन करते हैं, वह युक्ति संगत नहीं है। कुशल-तत्वज्ञ पुरुष ऐसा कहते हैं।
टीका - यदि जलसम्पर्कात्सिद्धिः स्यात् ततो ये सततमुदकावगाहिनोमत्स्याश्च कूर्माश्च सरीसृपाश्च तथा मद्गवः तथोष्ट्रा-जलचरविशेषाः तथोदकराक्षसा जलमानुषाकृतयो जलचरविशेषा एते प्रथमं सिद्धयेयुः, न चैतदृष्टमिष्टं वा ततश्च ये उदकेन सिद्धिमुदाहरन्त्येतद् ‘अवस्थानम्' अयुक्तम्-असाम्प्रतं 'कुशला' निपुणा मोक्षमार्गाभिज्ञा वदन्ति ॥१५॥ किञ्चान्यत् -
टीकार्थ - यदि जल के सम्पर्क या संस्पर्श से मोक्ष की प्राप्ति हो तो जो निरन्तर जल में डुबकी लगाते रहते हैं, उन मछलियों, कछवों, सरिसृपों, मद्गुवो तथा जलोष्ट्रों, जलराक्षसों-मनुष्य की आकृति के विशाल जलचर जीवों को सबसे पहले मोक्ष मिलना चाहिए, किन्तु ऐसा दृष्टिगोचर नहीं होता और न यह इष्ट ही है । अतः जो जल के स्पर्श से मुक्ति मिलना प्रतिपादित करते हैं, उनका मन्तव्य अयुक्ति युक्त है, मोक्ष मार्ग वेत्ता ज्ञानी पुरुष यह बतलाते हैं ।
उदयं जइ कम्ममलं हरेज्जा, एवं सुहं इच्छामित्तमेव । अंधं व णेयारमणुस्सरित्ता, पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा ॥१६॥ छाया - उदकं यदि कर्ममलं हरेदेवं शभ मिच्छामात्र मेव ।
अन्धञ्च नेतार मनुसृत्य प्राणिनश्चैवं विनिघ्नन्ति मन्दाः ॥ अनुवाद - जल यदि कर्मफल-पाप का हरण करता है तो वह पुण्य कर्माणुओं का भी क्यों नहीं हरण करेगा । जल के छूने से मुक्ति मानना इच्छामात्र-केवल मन गढंत है । मंद-बुद्धि हीन पुरुष, ज्ञान शून्य नेता-मार्गदर्शक का अनुसरण करते हुए जल स्नान आदि द्वारा प्राणियों की हिंसा करते हैं।
टीका – यद्यदुकं कर्ममलमपहरेदेवं शुभमपि पुण्यमपहरेत्, अथ पुण्यं नापहरेदेवं कर्ममलमपि नापहरेत्, अत इच्छामात्र मेवैतद्यदुच्यते-जलं कर्मापहारीति, एवमपि व्यस्थिते ये स्नानादिकाः क्रियाः स्मार्तमार्गमनुसरन्त: कुर्वन्ति व्यते यथा जात्यन्धा अपरं जात्यन्धमेव नेतारमनुसृत्य गच्छन्तः कुपथश्रिताः भवन्ति नाभिप्रेतं स्थानमबाप्नुवन्ति एवं स्मार्तमार्गानुसारिणो जलशौचपरायणा 'मन्दा' अज्ञाः कर्तव्याकर्तव्यविवेकविकलाः प्राणिन एव तन्मयान् तदाश्रितंश्च पूतरकादिन् ‘विनिघ्नत्ति', व्यापादयन्ति अवश्यं जलक्रियया प्राणव्यपरोपणस्य सम्भवादिति ॥१६॥ अपिच -
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