Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
English Translation (preserving Jain terms):
The woman, after abandoning her modesty, dharma, and other virtues, says to the ascetic who is engrossed in sensual pleasures: "You are now reduced to a person of no consequence." Seeing this, the ascetic, who is infatuated with her, falls at her feet to appease her. It is said:
"The lions with their thick, large manes, the elephants with their temples oozing ichor, and the heroic men in battle become the most cowardly in the presence of women."[1]
Thereafter, realizing that the ascetic is completely infatuated with the objects of senses, she raises her left foot and strikes it on his head, thus humiliating him.[2]
Further, the woman says to the ascetic:
"O Bhikkhu! If you are hesitant to stay with a woman having thick hair, then I shall pluck out my hair here itself. Thereafter, you shall not stay anywhere else but with me."[3]
Explanation: The woman, using clever and friendly words, tries to make the ascetic understand that if he is ashamed to stay with a woman having thick hair, then she is willing to pluck out her hair. However, after that, he shall not stay anywhere else but with her.
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स्त्री परिज्ञाध्ययनं
लज्जा धर्मादीन् परित्यज्यात्मा दत्तः त्वं पुनरकिञ्चित्कर इत्यादि भणित्वा, प्रकृपितायाः तस्या असौ विषयमूर्च्छितस्तत्प्रत्यायनार्थं पादयोर्निपतति, तदुक्तम्
व्याभिन्नकेसरबृहच्छिरसश्चसिंहा, नागाश्च दान मदराजिकृशैः कपौलेः । मेघाविनश्च पुरुषाः समरे च शूराः स्त्रीसन्निधौ परमकापुरुषा भवन्ति ॥१॥
ततो विषयेष्वेकान्तेन मूर्च्छित इति परिज्ञानात् पश्चात् 'पादं' निजवामचरणम् "उद्धृत्य " उत्क्षिप्य 'मूर्ध्नि' शिरसि 'प्रध्नन्ति' ताऽयन्ति एवं विडम्बना प्रापयन्तीति ॥२॥ अन्यच्च -
टीकार्थ
सूत्रकार काम भोग में संलग्न पुरुष की बुरी दशा का दिग्दर्शन कराने हेतु कहते हैं यहाँ 'अथ' शब्द अनन्तर के अर्थ में है 'तु' शब्द विशेषणार्थक है । स्त्री के साथ संसर्ग हो जाने से संयम से पतित स्त्री में आसक्त, काम वासना एवं भोग में संलग्नचेत्ता साधु को जब स्त्री जान जाती है, समझ लेती है कि मैं जिसे काला या सफेद जैसा कहूँगी, यह भी वैसा ही कहेगा, क्यों कि यह मेरे अधीन है, अथवा वह अपने कार्य का साधु पर किया गया बड़ा आभार बताती हुई तथा उसके कार्य को नगण्य बताती हुई, उसे कहती है कि तुम लुंचित मस्तक हो, तुम्हारी कांख, छाती तथा वस्तिस्थान दुर्गन्ध युक्त है, फिर भी मैंने अपना कुल, शील, प्रतिष्ठा, लज्जा, धर्म आदि सबका त्याग कर अपनी देह तुम्हें सौंपी किन्तु तुम मेरे लिए कुछ भी नहीं करते । वह भोगासक्त काम मूर्च्छित साधु जब उसको यों क्रोध पूर्ण शब्दों में बोलते हुए देखता है, तो उसे प्रसन्न करने हेतु उसके पैरों पर गिर पड़ता है। कहा है- सघन केसर- गले के केशों में आछन्न विशाल, मस्तक युक्त शेर, मदजल से संसिक्त कपोल युक्त हाथी, मेधावी बुद्धिशील पुरुष तथा युद्ध में शौर्यशील जन का जब स्त्री से सामना होता है, तो अत्यन्त कायर - भीरू हो जाते हैं। जब स्त्री यह समझ लेती है कि यह साधु विषयों में एकान्त रूपेण मूर्च्छित है, तब वह अपना बायाँ पैर उठाकर उसके मस्तक पर प्रहार करती है - लात मारती है । यों वह उस साधु की विडम्बना या दुर्दशा करती है ।
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जइ केसिआ णं मए भिक्खू, णो विहरे सह णमित्थीए । केसाणविह लुंचिस्सं, नन्नत्थ मए चरिज्जासि ॥३॥
छाया यदि केशिकया मया भिक्षो ! नो विहरेः सह स्त्रिया ।
केशानिह लुंचिष्यामि तान्यत्र मया चरेः ॥
अनुवाद - स्त्री साधु से कहती है कि मेरे मस्तक पर घने केश है। केशवाली के साथ विहार करने में यदि तुझे शर्म आती है तो मैं इसी स्थान पर अपने केशों का लुंचन कर डालूंगी, किन्तु मेरे सिवाय तुम्हें और किसी के यहाँ नहीं जाना है।
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टीका - केशा विद्यन्ते यस्याः सा केशिका ण मिति वाक्यालङ्कारे, हे भिक्षो ! यदि मया 'स्त्रिया' भार्यया केशवत्या सह नो विहरेक्त्वं, सकेशया स्त्रिया भोगान् भुज्जानो व्रीडां यदि वहसि ततः केशानप्यहं त्वत्सङ्गमाकाङ्क्षिणी— लुञ्चिष्यामि' अपनेष्यामि, आस्तां तावदलङ्कारादिकमित्यपिशब्दार्थः, अस्य चोपलक्षणार्थत्वाद्न्यदपि यद् दुष्करं विदेशगमनादिकं तत्सर्वमहं करिष्यते, त्वं पुनर्मया रहितो नान्यत्र चरेः, इदमुक्तं भवति- - मया रहितेन भवता क्षणमपि न स्थातव्यम्, एतावदेवाहं भवन्तं प्रार्थयामि, अहयपि यद्भवानदिशति तत्सर्वं विधास्य इति ॥३॥ इत्येवमपिपेशलैर्विश्रम्भजननैरापात भद्रकैरालापैर्विश्रम्भयित्वा यत्कुर्वन्ति तद्दर्शयितुमाह
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