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पश्चात् आचार्य पुष्पदंत 'वनवास नगर चले गये। कुछ समय अंकलेश्वरकी ओर विहार करते करते भूतबलि द्रविड़ देश चले गये।
पुष्पदंत आचार्यने अपने भांजे राजा जिनपालितको दीक्षा देकर उन्हें सिद्धान्तका अध्ययन कराया। उसके निमित्त आपने 'बीसदी सूत्र' नामक एक ग्रंथकी रचना की, जिसे अवलोकनके लिये आपने उन्हीके साथ भूतबलिजीके पास भेज दिया।
इस रचनाके बारेमें यह भी किवंदति है, कि गिरिनगरसे वापस लौटते समय आचार्य पुष्पदंत व आचार्य भूतबलिने अंकलेश्वर (जि. भरूच, गुजरात)में चातुर्मास बिताया व आचार्य पुष्पंदतके चले जानेके पश्चात् भी आचार्य भूतबलि वहाँ सजोत (अंकलेश्वरके पास)के जंगलोंमें रहे। पुष्पदंत आचार्य द्वारा भेजे गए 'बीसदी सूत्र' आचार्य भूतबलिको यहीं मिला। भूतबलि
आचार्यने आचार्यदेवकी अल्पायु जानकर 'महाकर्मप्रकृतिपाहुड़'के विच्छेद-भयसे द्रव्यप्रमाणसे लगाकर आगेकी ग्रंथ रचना ज्येष्ठ शुक्ला पंचमीको पूर्ण की। अतः ज्येष्ठ शुक्ला पंचमीको चतुर्विध संघने षटूखंडागमश्रुतकी पूजा की व बड़ा महोत्सव किया। (तब ही से जिनेन्द्र
वहे
श्रुतपञ्चमीको षखंडागमकी पूर्णाहूति पर चतुर्विध संघ द्वारा जिनवाणीकी पूजन-भक्ति १. वनवास जो कि उत्तर कर्णाटकका ही प्राचीन नाम है। जो तुंगभद्रा और वरदा नदीयोंके बीच बसा
हुआ है। प्राचीनकालमें वहाँ कदम्ब वंशका राज्य था। उसकी राजधानी 'वनवासि' थी; वहाँ अब
भी उस नामका गाँव विद्यमान है। २. जो कि दक्षिण भारतका वह भाग है, जो चेन्नाई (मद्रास)के सेरिगपट्टम और कामोरिन तक फैला हुआ है और जिसकी प्राचीन राजधानी कांचीपुरी थी।
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