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भक्तिक्रियामें कुशल हैं, उन्हें हम भवदुःखराशिको भेदनेके लिए पूजते हैं। जिनके कर्मों के उदयके अभावसे, अपने आत्माकी शुद्ध स्वाभाविकता इतनी अधिक होती है, कि 'पानीमें लकीर' की भांति अल्प संज्वलन कषाय ही रह गया है।
उनमें सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान- सम्यक्चारित्रकी अधिकतासे, प्रधान पद प्राप्त करके, संघमें नायक हुए हैं; तथा जो मुख्यरूपसे तो निर्विकल्प स्वरूपाचरणमें ही मग्न हैं और कदाचित् धर्मके लोभी अन्य याचक - जीव उनको देखकर राग अंशके उदयसे करुणाबुद्धि हो तो उनको धर्मोपदेश देते हैं, जो दीक्षाग्राहक हैं, उनको दीक्षा देते हैं, जो अपने दोषोंको प्रकट करते हैं, उनको प्रायश्चित्त विधिसे शुद्ध करते हैं।
ऐसे आचरण करानेवाले आचार्य भगवंतोंको हमारा
इस भांति सभी दिगम्बर आचार्य होते हैं, फिर भी विध- विध कुछ विशेषताएँ होती हैं ।
नमस्कार हो ।
अलग-अलग प्रत्येक आचार्यों में
अतः आचार्योंका उक्त सामान्य स्वरूप मुख्यरूपसे ध्यानमें रखकर यहाँ आगे मात्र प्रत्येक आचार्योंकी विशेषता ही प्रत्येक आचार्योंके जीवन चरित्रमें दर्शाई गई है; यह ध्यान देने योग्य है।
आचार्योंका आन्तरिक जीवन जो हमारे जीवनमें आदर्श बनाने योग्य है, वह ही महत्त्वपूर्ण है, फिर भी बाह्य जीवनकी विशेषतासे निखरती उनके आन्तरिक आत्मिक जीवनकी विशेष महत्ताको ध्यानमें रख, हम भी अपना जीवन वैसे ही संवारे, इसी हेतु यहाँ भगवान महावीरकी परम्पराके मूलसंघ अन्तर्गत उनकी अनेक शाखाओंमें हुए, आचार्योंका तथा मुनिराजोंका जीवन परिचय विविध इतिहासकारोंकी लेखनीको ध्यान में रखते हुए, यहाँ दिया जाता है।
वैसे यहाँ जिन आचार्योंका जीवन परिचय दिया गया है, उतने ही मूलसंघमें आचार्य नहीं हैं। अन्य भी कई आचार्य हुए हैं; परन्तु जिनका परिचय – उनकी कृतियाँ या अन्य आचार्योंने अपनी कृतिमें उनकी की गई महात्म्यताका वर्णन, उसके बलसे उन्हींका जीवन दिया है; परन्तु जिनका वर्णन नहीं मिलता है, उन्हें यहाँ नहीं लिया है।
अतः सभी सम्यक् रत्नत्रयधारक आचार्योंके जीवनको 'निश्चय - व्यवहार मोक्षमार्गक प्रणेतारूप' लक्ष्यमें लेकर, हम उन्हें अपने जीवनके आदर्श समझ अपना जीवन संवारे यही भावना है।
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