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भगवान आचार्यदेव श्री श्रीधराचार्यदेव
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श्रीधराचार्य नामक अनेक जैन विद्वान हुए हैं। उनमें श्रुतावतार-गद्य व भविष्यदतचरित नामक ग्रंथोंके रचयिताके रूपमें उभरते आप एक अलग आचार्य हैं। माना जाता है कि आप अपभ्रंशमें लिखित सुकुमालचरिउके रचयिता भी हैं।
ऐसी कथा प्रसिद्ध है, कि 'बलत्के जिनमंदिरमें जहाँके शासक गोविन्दचन्द्र थे, ऐसे पद्मचन्द्र नामक एक मुनि उपदेश दे रहे थे। उपदेशमें उन्होंने सुकुमालजीका उल्लेख किया। श्रोताओंमें पीछे साहूका पुत्र कुमार नामक एक
व्यक्ति था। उसने सुकुमालस्वामीके बारेमें विशेष जाननेकी इच्छा व्यक्त की। मुनिराजने कुमारोंको श्रीधराचार्यसे अभ्यर्थना करनेको कहा। वे ही उसकी जिज्ञासा शान्त कर सकते थे।' अतः कुमारने श्रीधराचार्यको सुकुमालचरिउ रचनेके लिए प्रेरित किया। जिससे आचार्यदेवने यह ग्रंथ लिखा।
____ आप श्री इन्द्रनन्दि आचार्यकी भांति ऐसे आचार्य हैं, कि जिन्होंने स्वयमके लिए तनिक भी न लिखकर अन्य आचार्योंकी ‘श्रुतावतार'रूप पट्टावलीयाँ लिख दी। जिसके बल ___ ही इतिहासकार यत्किंचित् आचार्योंके समय, स्थिति आदिके बारेमें समझ पाते हैं।
आपकी रचना उक्त श्रुतावतार गद्य, भविष्यदत्त चरित, सुकुमाल चरिउ है। आपका समय ईस्वीकी १४वीं शताब्दीका मध्यपाद प्रतीत होता है। आचार्य श्री श्रीधराचार्यदेव भगवंतको कोटि कोटि वंदन।
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