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भगवान आचार्य श्री कुमारनन्दि
श्री कुमारनन्दि दक्षिण प्रदेशके महान प्रभावशाली, वादन्याय विचिक्षण, व तार्किक चूडामणि महान आचार्यदेव हुए हैं। विद्यानन्दी
आचार्यदेवने ‘पत्र परीक्षा', 'प्रमाण-परीक्षा' व आचार्य श्री कुमारनन्दिका दर्शन
'तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार' में आपका भूरा-भूरा करते मुनिराज व श्रावकगण
गुणकीर्तन ही किया हो, ऐसा नहीं परन्तु आपके प्रभावके रूपमें आपके कई उदाहरण भी अपने ग्रंथमें प्रस्तुत किये हैं।
वैसे जिनशासनमें आपका नाम अप्रसिद्ध रहा है, क्योंकि आपकी कोई रचना वर्तमानमें उपलब्ध नहीं है, पर आपके बारेमें आपके साहित्य संबंधित जो प्रकाश हुआ है, वह महान आचार्य विद्यानन्दिकृत विविध ग्रंथोंमें, कई स्थानों पर मिले उल्लेखोंसे ज्ञात होता है।
दक्षिणमें श्रीपुर जिनालयसे मिले 'नाममंगल' ताम्रपत्रसे ज्ञात होता है, कि ई.सन् आठवीं शताब्दीके बीच आपका समय होता चाहिये। उस ताम्रपत्रसे यह भी पता चलता है, कि आपके गुरु भगवान आचार्य चन्द्रनन्दी थे। आपके शिष्य कीर्तिनन्दी व प्रशिष्य विमलचन्द्र थे।
__ आपका एक ही ग्रंथ 'वादन्याय विचक्षण' प्रसिद्ध है। हो सकता है, अन्य ग्रन्थ भी हो, पर उल्लेख नहीं मिला है, पर यह 'वादन्यायविचिक्षण' ग्रंथ भी उपलब्ध नहीं है।
जो कुछ भी हो, इतना स्पष्ट है, कि आचार्य कुमारनन्दि एक प्रभावशाली तार्किक व जैन न्यायके महान विद्वतायुक्त ज्ञाता आत्मज्ञानी भावलिंगी संत थे।
आप ईसुकी ८वीं-९वीं शताब्दीके आचार्य हों, ऐसा विद्वानोंका मत है। आचार्यदेव कुमारनन्दि भगवंतको कोटि कोटि वंदन।
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