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भगवान आचार्य श्री महावीरदेव
भारतीय गणितके इतिहासमें श्री महावीराचार्यका नाम बड़े आदरके साथ लिया जा सकता है। जैन गणितको व्यवस्थितरूप देनेका श्रेय आपही को प्राप्त
___ आपके गणित ग्रंथकी पाण्डुलिपियाँ एवं कन्नड व तामिल टीकाओं परसे
इतिहासकार यह निष्कर्ष निकालते हैं, कि शिष्योंको उपदेश देते आचार्यश्री महावीरदेव ___ आप मैसुर प्रान्तके किसी कन्नड भागमें
हुए होंगे। उस समय सुदूर दक्षिणमें गणित-विज्ञानको वृद्धिगत करनेका श्रेय आपने प्राप्त किया। जब कि उत्तरीय भारतमें ब्रह्मगुप्त और भास्करके समयमें श्रीधराचार्यको छोड़कर कोई अन्य प्रकाण्ड गणितज्ञ नहीं हुआ।
आपने पूर्ववर्ती गणितज्ञोके कार्यमें पर्याप्त संशोधन व परिवर्द्धन किया था। आपने ही शून्यके विषयमें भाग क्रिया करनेकी प्रणालिका आविष्कार किया। किसी संख्यामें शून्य द्वारा विभाजन किये फलोंका निरूपण करते हुए बताया, कि संख्या शून्य द्वारा विभाजित होने पर परिवर्तित नहीं होती है। जिस दृष्टिकोणको लेकर यह सिद्धांत निबद्ध किया है, वह सिद्धान्त स्थूल विभाजन पर आवृत है।
आपने (१) गणितसार संग्रह व (२) ज्योतिषपटल, ये दो ग्रंथ रचकर जैन गणितको समृद्ध किया है।
आप राजा अमोघवर्ष (प्रथम)के मित्र थे। आप दोनों साथ-साथ रहते थे। पीछेसे श्री महावीराचार्यने भगवती जिनदीक्षा ग्रहण की थी। आपका समय अमोघवर्ष (प्रथम) अनुसार ई.स. ८००-८३० इतिहासकार निर्णित करते हैं।
आचार्य श्री महावीरदेव भगवंतको कोटि कोटि वंदन।
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