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- જયદેવ
अन्यस्थल पर वाद करनेवाले लोगोंको अनेकांतविद्यासे उपदेश देते वादिगजकेसरी सिद्धसेन आचार्य जैसी स्तुति आदि रचने लगे। आपका प्रभाव बहुत ही बढ़ने लगा, जिसके कारण श्वेताम्बर संघको अपनी भूलका एहसास हुआ होगा और प्रायश्चित्तकी शेष अवधिको रद्दकर उन्हें प्रभावक आचार्य घोषित किया होगा। लेकिन वे तो दिगम्बर आचार्य ही बने रहे।
आप दिगम्बर संप्रदायके 'सेन'गणके आचार्य माने जाते हैं। आपके बारेमें ऐसा भी कहा जाता है, कि उन्होंने उज्जयिनी नगरीके महाकालके मंदिरमें 'कल्याणमंदिर' स्तोत्र द्वारा रुद्र-
लिंगका स्फोटन कर पार्श्वनाथ भगवानका जिनबिंब प्रकट किया। इससे भी आपकी बहुत ही प्रसिद्धि हुई तथा आपने 'विक्रमादित्य राजाको सम्बोधन किया था।
आप आचार्य समन्तभद्रदेवके पश्चात्वर्ती आचार्य माने जाते हैं—अतः आप ई.स. ५६८के आचार्य माने जाते हैं।
आपकी ‘सन्मतिसूत्र' व 'कल्याणमंदिर स्तोत्र' अति प्रसिद्ध रचनाएं हैं। यद्यपि द्वात्रिंशिकाए श्वेताम्बर सिद्धसेन दिवाकरकी रचना मानी जाती है, फिर भी उसमें कुछ रचना दिगम्बर सिद्धसेन आचार्यकी है, व कुछ श्वेताम्बर सिद्धसेन दिवाकर की है।
कल्याणमंदिर स्तोत्रके रचयिता आचार्यदेव कुमुदचंद्रस्वामीको कोटि कोटि वंदन।
१. जिनके नामसे विक्रम संवत शुरु होता है, वे राजा विक्रम अन्य थे, व ये राजा विक्रम अन्य होने चाहिए क्योंकि दोनोंके बीच करीब ६०० वर्षका अन्तर है।
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