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भगवान आचार्यदेव
श्री सिद्धसेन : दीक्षा नाम कुमुदचंद्राचार्य
आचार्यदेव सिद्धसेन स्वामी महाकवि तथा तर्क व न्यायके महाज्ञाता होनेसे महा दार्शनिक भी थे । यद्यपि सिद्धसेन नामक जैन परम्परामें बहुत विद्वान हुए हैं, उनमें आप अनूटे ही थे, इसलिए ही आपको महाकविकी भाँति वादिगजकेसरी भी माना जाता है ।
आदिपुराणके रचनाकार आचार्य जिनसेनस्वामी व पद्मपुराणके रचनाकार आचार्य रविषेणस्वामीने आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इसी भांति कई आचार्योंने आपका सन्मानसे स्मरण किया है। तात्पर्य यह है, कि कवि व न्यायके विद्वान आचार्यके रूपमें पश्चात्वर्ती आचार्योंमें आपकी बहुत ही ख्याति थी ।
कहा जाता है, कि आप उज्जयिनी नगरीके कात्यायन गोत्रीय देवर्षि ब्राह्मणकी देवश्री पत्नीके पुत्र थे। आप प्रतिभाशाली और समस्त शास्त्रोंके पारंगत विद्वान थे। वृद्धवादि जब उज्जयिनी नगरीमें पधारे, तो उनके साथ सिद्धसेनका शास्त्रार्थ हुआ । सिद्धसेन वृद्धवादिसे बहुत प्रभावित हुए और उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया ।
गुरुने दीक्षा नाम कुमुदचंद्र रखा था व आपके गुरुका नाम धर्माचार्य था ।
दिगम्बर आचार्य कि जो 'सन्मतिसूत्र' व 'कल्याणमंदिर' स्तोत्रके रचयिता हैं, वे सिद्धसेन आचार्य और श्वेताम्बरके न्यायावतार ग्रंथके रचयिता सिद्धसेन दिवाकरसे ये सिद्धसेन आचार्य भिन्न हैं । अतः ये सिद्धसेन आचार्य मात्र ' आचार्य सिद्धसेनके नामसे जाने जाते हैं, जब कि 'श्वेताम्बर सिद्धसेन', 'सिद्धसेन दिवाकर' के नामसे प्रसिद्ध हैं ।
फिर भी माना जाता है, दिगम्बर सिद्धसेन आचार्य जब श्वेताम्बरकी मान्यता धारक थे, तब उन्होंने प्राकृत श्वेताम्बर आगमोंको संस्कृतमें रूपान्तरित करनेकी भावनामें, उन्हें १२ वर्षके लिए श्वेताम्बर संघसे निष्कासित किआ गया था । तब वे दिगम्बर साधुओंके सम्पर्क में आए व उनके तत्त्वसे प्रभावित हुए । विशेषतः आचार्य समन्तभद्रस्वामीके जीवन वृतांत व उनके साहित्यका उनपर भारी प्रभाव पड़ा। इस परसे कहा जाता है, कि वे आचार्य समन्तभद्रदेव कहीं कहीं दिगम्बर आचार्य सिद्धसेनजीके लिए, वे सूर्यसमान होनेसे 'दिवाकर' ऐसी उपमा भी लगाने में आती थी ।
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