________________
मुमुक्षुओंका आचार्योंके प्रति समर्पण-भावमय हृदय देख, उनके जीवनके संबंधमें यत्किंचित् जानकारी मिले—इस हेतु आत्मधर्म (हिन्दी) में आचार्योंके जीवन-चरित्र संबंधित स्तंभ दिया गया था। मुमुक्षुओंकी ऐसी भावना थी, कि उसमें आये आचार्योंके जीवन चरित्रको यदि योग्य पुस्तकाकार दिया जाय तो मुमुक्षुओंको व युवावर्गको विशेष लाभकर होगा। अतः उन आचार्योंके जीवनचरित्रको लेकर यह 'भगवान महावीरकी आचार्य परम्परा' नामक पुस्तक प्रकाशित की जा रही है।
इस पुस्तकमें आचार्योंका जीवन-चरित्र संक्षिप्तरूपमें विविध शास्त्रों व जैन इतिहासग्रंथोंके आधारसे तैयार किया गया है।
यह तो स्पष्ट है, कि इस पुस्तकमें बताये आचार्य ही भगवान महावीरस्वामीके शासनमें हुए आचार्य हों, ऐसा नहीं; वरन् जिन आचार्योंके बारेमें हमें यकिचित् मिला उसे यहाँ दर्शाया गया
भगवान महावीरस्वामीके निर्वाण पश्चात् ६८३ वर्ष तककी परम्परा जहाँ भी मिलती है, वहाँ अक्सर मात्र '६२ वर्षमें इतने, पश्चात् १०० वर्षमें इतने'....आचार्य हुए' इस भांति ही मिलती है। उसे लौकिक राजाओंके समयानुसार व्यवस्थित मिलान कर, उनके आचार्यपदवीका काल दर्शाया गया है।
___ भगवान महावीरस्वामीके निर्वाणके ६८३ तककी परम्परा आगमोंमें मिलती है, वह तो तद्नुसार दर्शाई गई है। तत्पश्चात् मूलसंघ विच्छेद होकर नये--नये नन्दी, सेन आदि संघ, गण उपगणमें बँट जानेसे तथा प्रत्येककी अपनी-अपनी परम्परा होनेसे, आचार्योंकी कोई स्पष्ट एक परम्परा नहीं बन पानेसे, भगवान महावीरस्वामीके निर्वाणके ६८३ वर्ष पश्चात्की स्पष्ट परम्परा यहाँ नहीं दर्शाई है, पर उनका मात्र आचार्य पदवीका काल ही दर्शाया है।
भारतवर्षमें वीर निर्वाण, विक्रम संवत, शक संवत, ईस्वी आदि कई प्रकारके संवत् प्रचलित हैं। यह प्रथा आजसे ही नहीं
(9)