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वाबेचां पूछ्यौ - छंद जोङ्या ? सोभाचंद बोल्यो - हां, जोड़या ।
इसुण उण सेवग नै साथे लेइ स्वामीजी रा श्रावकां कनै आय बोल्या - ओ सोभाचंद सेवग निरापेखी है । भीखणजी ने जाणै जिसा कहिसी । कहै भाई ! भीखणजी किसायक ?
भिक्ख दृष्टांत
जद सोभाचंद बोल्यो कांइ कहिवावी उणांरी श्रद्धा उणां कनै अपांरी है । तौ पिण वाबेचां मांनें नहीं, बोल्या - तूं कह ।
श्रद्धा
पछै सोभाचंद बोल्यो - भीखणजी मैं गुण-अवगुण मोनें दरसे जिसा
कहिसूं ।
जद वाबेचा फेर बोल्या - तोनै दरसे ज्यूं ही कहै । जद सोभाचंद छंद जोया तिका कहिवा लागौ ।
छन्द
अनमय कथणी रहिणी करणी अति आठंड कर्म जिप अधिकारी । गुणवंत अनंत सिद्धंत कला गुण प्राकम पोहोच विद्या पुण भारी । शास्तर सार बत्तीस जाणे सह केवल ज्ञानी का गुण उपकारी । पंचइंद्री कूं जीत न मानत पाखंड साध मुनिंद्र बड़ा सतधारी । साधवा मुक्ति का वास बन्दा सहुभीखम स्वाम सिद्धंत है भारी । स्वामी परभव के स्वार्थ साचहै वाचहै सूत्र कला विस्तारी । तेरा ही पंथ साचा त्रिहुं लोक में नाग सुरेन्द्र नमैं नरनारी । सुणि वात है साच सिद्धंत सुज्ञान की बौहत गुणी करणी बलिहारी । प्रथी के तारक पंचम आर में भीखम स्वांमी का मारग भारी || १॥ इम सुण वाबेचा तो सरक गया । अने स्वामीजी रा श्रावक राजी होय बीस पचीस रुपीया रै आसरे दीया ।
९७. फूलां रौ दृष्टांत न मिलै
स्वामीजी कनै देहरापंथी आयनै बोल्या - थानें नदी उतरा मै धर्म है तो म्हे फूल चढ़ावांतिणमै पिण धर्म ।
जद स्वामीजी बोल्या - एक कांनी नदी कड़ियां तांई अने एक कांनीं गोड़ां सुधी, एक कांनी सूकी तौ म्हे सूकी ऊतरां । पिण घणा पांणी वाली दो च्यार कोस री अवळाई सूं ई टळं तौ टाळां ।
अ थे फूल चढ़ाव सो एक तौ सूका फूल पड़ा है, एक-दो-तीन दिनां रा कुमळाया फूल है, एक काची कळीयां है थे किसा चढ़ावौ ?
जद उवे बोल्या - म्हे तो काची कळीयां नखां सूं चूंटी चूंटी चढ़ावां । जद स्वामीजी बोल्या - थांरा परिणाम तौ जीव मारवा रा अन म्हांरा
परिणाम दया पाळवा रा । इण न्याय नदी ऊपरै फूलां रो दृष्टांत न मिले ।