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दृष्टांत : २९-३०
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२९. दुमनो चाकर दुसमण सरींखौ
सं० १८७७ आमेट मै कोई कोई भाया संकीला हुंता और ग्रहस्थ श्रावक श्राविकां कनै अवर्णवाद बोलै । ए बात भारमलजी स्वामी केलवा मै सुणी नै हेमजी स्वामी ने कह्यौ - "हेमजी ! और घणा गामां रा लोक तौ दर्शन करवा आया अनै आमेट वाळा आया नहीं। इस बार बार पूछै । जद हेमजी स्वामी बोल्या - आंमेट वालां ने बार- बार क्यूं पूछ्यौ । जद भारमलजी स्वामी बोल्या - उवे संकीया दोय च्यार जणां आसरै छै, ज्यांने परा छोडां ना कही देवां, अठी रा श्रावक थे बाजौ मती । न्यारा कींया पछै लोक उणांरी बात माने नहीं । जिण टाणे एक दीपा साधु ने टोळा बारे काढ्यौ तौ सो भारमलजी स्वामी बोल्या - दीपा नै छोड्यौ ज्यूं उणां नै ई छोड़ देवां । इसी मोटा पुरुषां री बुद्धि । जिणसूं और रै संका न पड़े । “दुमनो चाकर दुसमण सरीखो" लोक मै इं यूं कहै, ते कारण छोड़णा धार्या ।
३०. भरत क्षेत्र में साधां रो विरह
भेखधारी तथा भेखधार्यां ना आवक बोल्या - भीखणजी कहै - भरत क्षेत्र में साधां रो विरह पड़यो निरन्तर नहीं, इकवीस हजार वर्ष, इम जोड़ पिछै नै सूत्र में छेदोपस्थापनीय चारित्र नों विरह जघन्य ६३ हजार वर्ष नो उत्कृष्टो १८ कोड़ा कोड़ सागर नो कह्यो छै सो इहां भरत मै थोड़ा काळ रौ विरह किम संभवै, ए वारता सुणी नै हेमजी स्वामी उणांने जाब दे दीयौ । पछे भारमलजी स्वामी नै पूछयौ - छेदोपस्थापनीय चरित्र नौ जघन्य ६३ हजार वर्ष सू ओछौ न कह्यौ तौ इहां भरत मै चारित्र नों विरह किम संभव ?
जद भारमलजी स्वामी बोल्या -- पांच भरत, पांच एरवत १० क्षेत्रां मै समकाळे छठो आरो २१ हजार वर्ष नो, पहिलो आरो २१ हजार वर्ष नो, जो आरो २१ हजार वर्ष नौ एवं ६३ हजार वर्ष चारित्र न हुवै अने बीजा आरा ना तीन वर्ष साढ़ा आठ मास पछै तीर्थंकर जनमें, ३० वर्ष घर मै रही दीक्षा लेवे तठा पछै छेदोपस्थापनीय चारित्रिया साधु हुवै । इम ६३००० हजार वर्ष जाभौ विरह कह्यौ छै । अनै इहां भरत मै थोड़ा काळ रौ साधां रौ विरह थयो दीस तौ और धातकी खंड रा भरत एरवत तथा अर्द्धपुखरार्द्ध ना भरत एरवत मैं साध रह्या होसी, इण न्याय छेदोपस्थापनीय नो विरह समकाले न कहीये ।
जद हेमजी स्वामी बोल्या - १० क्षेत्रां री रीत तो एक है सौ इहां भरत विरह थया १० क्षेत्रां में इ विरह चाहिजे ?